Saturday, November 11, 2017

सभी अपने बेगाने छूट जाते हैं

न हो मायूस अगर कुछ दोस्त पुराने छूट जाते हैं
कि इक दिन तो सभी अपने बेगाने छूट जाते हैं

सजाया था कभी जिनको बड़े अरमान से यारो
जिन्हें समझे थे अपना वो ठिकाने छूट जाते हैं

पड़ जाती हैं जब दुनिया की जिम्मेदारियाँ सर पे
तो बचपन के सभी सपने सुहाने छूट जाते हैं

जिन्हें मंज़िल की चाहत है नज़र मंज़िल पे रखते हैं
नज़र में गर नज़ारे हों - निशाने छूट जाते हैं

है जिनको नाज़ जिस्मो जाँ या दौलत पे ,उन्हें कह दो
कि सांसें रुठ जाती हैं  -  ख़ज़ाने छूट जाते हैं

साक़ी की बदौलत ही तो हैं आबाद मयख़ाने
नामेहरबाँ हो गर साक़ी - मैख़ाने छूट जाते हैं

खींचे तो हैं दिल को हसरतों के जाम मगर 'राजन '
न गर हो तिशनगी दिल में - पैमाने छूट जाते हैं

                  'राजन सचदेव '
                (नवंबर 11, 2017 - 2:30 AM)


4 comments:

  1. Time to put all your poetry in a book. Good one.

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  2. Beautiful, Uncle Ji! Dhan Nirankar Ji!

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  3. Thank you Vishnu ji. Any suggestions how to get it published?

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  4. Really tremendous......Dhan Nirankar ji

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