"किव सचिआरा होवई किव कूड़ै तुटै पाल
हुकम रजाई चलना 'नानक ' लिखया नाल " (जपुजी साहिब)
सचिआर कैसे होवें ? कूढ़ अर्थात भ्रम अथवा माया का जाल कैसे टूटे ?
नानक कहते हैं (प्रभु के) हुकम एवं रज़ा में रहने और चलने से।
ये पढ़ने या सुनने के बाद मन में सहज ही एक सवाल उठता है कि आखिर हमें ये कैसे पता चले कि प्रभु का
हुकम (आज्ञा) और रज़ा यानि इच्छा क्या है?
इस बात का जवाब भी हमें गुरुबानी एवं अन्य धर्म ग्रंथों में लिखा हुआ मिलता है।
सुखमनी साहिब में गुरु अर्जुन देव संत की महिमा बताते हुए लिखते हैं :
"जो होआ होवत सो जाने - प्रभ अपने का हुकम पछाणे"
संत लोग ऐसा मानते हैं कि जो भी हुआ है वो प्रभु का हुकम ही था
क्योंकि प्रभु के हुकम अथवा प्रभु के बनाए नियम के विपरीत कुछ भी नहीं होता।
"जो हुआ - काश वो न हुआ होता" हम अक़्सर ऐसा सोच कर दुखी होते रहता हैं
लेकिन भक्त जन हर परिस्थिति में "जो हुआ वही होना था " मान कर उसे स्वीकार कर लेते हैं
यदि थोड़ा गहराई से इस पर विचार किया जाए तो हमारे पास दो विकल्प हो सकते हैं :
1. जो हुआ उसे अपनी इच्छा के अनुसार बदल दें और जैसा हम चाहते हैं वैसा कर दें ....
2. या फिर अपनी इस इच्छा - इस विचार कि "काश ऐसा न हुआ होता" को ही बदल दें।
जो घटना हो चुकी - क्या उसे बदला जा सकता है?
"जो हुआ - काश वो न हुआ होता".....ऐसा सोच सोच कर क्या हम बीती हुई घटनाओं को बदल सकते हैं ?
हम जानते हैं कि ऐसा होना मुमकिन नहीं हैं
लेकिन अपनी इच्छा - अपने विचारों को बदला जा सकता है
तो हक़ीक़त में हमारे पास दो ही विकल्प बचते हैं :
या तो "काश ऐसा न हुआ होता" सोच सोच कर दुखी होते रहें
या अपनी इस इच्छा को बदल कर "जो हुआ वही होना था" मान कर दूसरों को, स्वयं को या परिस्थिति को दोष देने की जगह उसे स्वीकार कर लें और सहज भाव में जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहें।
' राजन सचदेव '
हुकम रजाई चलना 'नानक ' लिखया नाल " (जपुजी साहिब)
सचिआर कैसे होवें ? कूढ़ अर्थात भ्रम अथवा माया का जाल कैसे टूटे ?
नानक कहते हैं (प्रभु के) हुकम एवं रज़ा में रहने और चलने से।
ये पढ़ने या सुनने के बाद मन में सहज ही एक सवाल उठता है कि आखिर हमें ये कैसे पता चले कि प्रभु का
हुकम (आज्ञा) और रज़ा यानि इच्छा क्या है?
इस बात का जवाब भी हमें गुरुबानी एवं अन्य धर्म ग्रंथों में लिखा हुआ मिलता है।
सुखमनी साहिब में गुरु अर्जुन देव संत की महिमा बताते हुए लिखते हैं :
"जो होआ होवत सो जाने - प्रभ अपने का हुकम पछाणे"
संत लोग ऐसा मानते हैं कि जो भी हुआ है वो प्रभु का हुकम ही था
क्योंकि प्रभु के हुकम अथवा प्रभु के बनाए नियम के विपरीत कुछ भी नहीं होता।
"जो हुआ - काश वो न हुआ होता" हम अक़्सर ऐसा सोच कर दुखी होते रहता हैं
लेकिन भक्त जन हर परिस्थिति में "जो हुआ वही होना था " मान कर उसे स्वीकार कर लेते हैं
यदि थोड़ा गहराई से इस पर विचार किया जाए तो हमारे पास दो विकल्प हो सकते हैं :
1. जो हुआ उसे अपनी इच्छा के अनुसार बदल दें और जैसा हम चाहते हैं वैसा कर दें ....
2. या फिर अपनी इस इच्छा - इस विचार कि "काश ऐसा न हुआ होता" को ही बदल दें।
जो घटना हो चुकी - क्या उसे बदला जा सकता है?
"जो हुआ - काश वो न हुआ होता".....ऐसा सोच सोच कर क्या हम बीती हुई घटनाओं को बदल सकते हैं ?
हम जानते हैं कि ऐसा होना मुमकिन नहीं हैं
लेकिन अपनी इच्छा - अपने विचारों को बदला जा सकता है
तो हक़ीक़त में हमारे पास दो ही विकल्प बचते हैं :
या तो "काश ऐसा न हुआ होता" सोच सोच कर दुखी होते रहें
या अपनी इस इच्छा को बदल कर "जो हुआ वही होना था" मान कर दूसरों को, स्वयं को या परिस्थिति को दोष देने की जगह उसे स्वीकार कर लें और सहज भाव में जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहें।
' राजन सचदेव '
Very inspirational thought ji......i remember ur old article is mat socha Kr,mat socha Kr......
ReplyDelete. Dhan Nirankar ji
Beautiful clarification!!
ReplyDeleteWith Regards,
Rosey
Respected Rajan J,
ReplyDeleteDhan Nirankar Ji.
Thanks for your words of wisdom.
With kind regards,
Humbly,
Surjit