मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे बाबा गुरबचन सिंह जी से मिलने और उनके असीम प्यार और आशीर्वाद प्राप्त करने के अनगिनत अवसर मिलते रहे । कभी कभी उनकी प्रचार यात्राओं के दौरान मुझे उनके साथ जाने के भी कई अवसर मिले ।
हालांकि वह एक बहुत प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी थे, फिर भी वह स्वभाव से बहुत सरल थे। अनेक विशेषताओं के साथ उनकी एक विशेषता यह भी थी कोई भी उनसे आसानी से मिल सकता था। कोई भी उनसे मिलने आता तो मिशन या समाज में उसकी पोज़ीशन या प्रतिष्ठा को ध्यान में न रखते हुए वो हर किसी को बड़े प्रेम से मिलते थे।
आमतौर पर उनके प्रवचन बहुत लम्बे नहीं होते थे; लेकिन वह अपने संदेश को बहुत सीधे स्पष्ट और प्रभावशाली शब्दों में व्यक्त करने में समर्थ थे। जो कहना चाहते थे वह थोड़े, मगर सीधे और साफ़ शब्दों में कह देते थे । अक्सर, वह अपनी विचारों में कोई दृष्टान्त या छोटी छोटी कहानियाँ भी सुनाया करते थे जिन के माध्यम से श्रोता उनकी बात आसानी से समझ लेते थे। ये कहानियां सुनने वालों पर काफी प्रभाव छोड़ती थीं ।
अपने एक प्रवचन के दौरान उन्होंने दृष्टान्त रूप में निम्नलिखित एक छोटी सी कहानी सुनाई:
एक युवा दम्पति ने रहने के लिए एक नई जगह पर घर लिया। एक सुबह जब वे नाश्ते कर रहे थे, तो पत्नी ने खिड़की में से अपनी पड़ोसन को घर के बाहर रस्सी पर कपड़े सुखाने के लिए डालते हुए देखा।
"ये कपड़े तो अभी भी गंदे हैं " उसने पति से कहा।
"लगता है इसे कपड़े धोने नहीं आते - या उसे कपड़े धोने के लिए कोई अच्छा साबुन चाहिए "
उसके पति ने बाहर देखा, लेकिन चुप रहा।
हर बार जब उसकी पड़ोसन बाहर कपड़े सूखने के लिए डालती तो वह यही बात कहती।
लगभग एक महीने के बाद, उसने देखा कि बाहर रस्सी पर एकदम साफ़ और चमकते हुए कपड़े लटक रहे थे। उसे आश्चर्य हुआ और उसने अपने पति से कहा:
"देखो, लगता है कि उसे किसी ने सही ढंग से कपड़े धोने का तरीका सिखा ही दिया। आज उसके धुले हुए कपड़े साफ़ हैं "
पति ने कहा, "आज सुबह मैंने जल्दी उठ कर अपने घर की सब खिड़कियों को साफ किया है - हमारे घर की खिड़कियाँ बहुत गंदी थीं।"
ये कहानी सुना कर बाबा जी ने कहा - बात ये नहीं थी कि उन कपड़ों को ठीक से धोया नहीं गया था या पड़ोसन को कपड़े धोने नहीं आते थे । वास्तव में वह खिड़की गंदी थी - जिसके माध्यम से वह देख रही थी।
उन्हों ने आगे कहा कि हमारे जीवन में भी कई बार ऐसी ही बातें होती हैं। हमअक्सर दूसरों को अपने मन की आँखों से देख रहे होते हैं इसलिए हमारा देखना भी हमारे विचारों पर निर्भर हो सकता है। जिस विचार से हम उन को देखते हैं वैसा ही हम समझ लेते हैं। वैसी ही धारणा बन जाती है। इसलिए, हर समय दूसरों को दोष देने के बजाय, हमें अपने आप की भी जांच करनी चाहिए - शायद हमें ही अपनी आंखों के चश्मे में लेंस को बदलने की जरूरत हो।
हालांकि वह एक बहुत प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी थे, फिर भी वह स्वभाव से बहुत सरल थे। अनेक विशेषताओं के साथ उनकी एक विशेषता यह भी थी कोई भी उनसे आसानी से मिल सकता था। कोई भी उनसे मिलने आता तो मिशन या समाज में उसकी पोज़ीशन या प्रतिष्ठा को ध्यान में न रखते हुए वो हर किसी को बड़े प्रेम से मिलते थे।
आमतौर पर उनके प्रवचन बहुत लम्बे नहीं होते थे; लेकिन वह अपने संदेश को बहुत सीधे स्पष्ट और प्रभावशाली शब्दों में व्यक्त करने में समर्थ थे। जो कहना चाहते थे वह थोड़े, मगर सीधे और साफ़ शब्दों में कह देते थे । अक्सर, वह अपनी विचारों में कोई दृष्टान्त या छोटी छोटी कहानियाँ भी सुनाया करते थे जिन के माध्यम से श्रोता उनकी बात आसानी से समझ लेते थे। ये कहानियां सुनने वालों पर काफी प्रभाव छोड़ती थीं ।
अपने एक प्रवचन के दौरान उन्होंने दृष्टान्त रूप में निम्नलिखित एक छोटी सी कहानी सुनाई:
एक युवा दम्पति ने रहने के लिए एक नई जगह पर घर लिया। एक सुबह जब वे नाश्ते कर रहे थे, तो पत्नी ने खिड़की में से अपनी पड़ोसन को घर के बाहर रस्सी पर कपड़े सुखाने के लिए डालते हुए देखा।
"ये कपड़े तो अभी भी गंदे हैं " उसने पति से कहा।
"लगता है इसे कपड़े धोने नहीं आते - या उसे कपड़े धोने के लिए कोई अच्छा साबुन चाहिए "
उसके पति ने बाहर देखा, लेकिन चुप रहा।
हर बार जब उसकी पड़ोसन बाहर कपड़े सूखने के लिए डालती तो वह यही बात कहती।
लगभग एक महीने के बाद, उसने देखा कि बाहर रस्सी पर एकदम साफ़ और चमकते हुए कपड़े लटक रहे थे। उसे आश्चर्य हुआ और उसने अपने पति से कहा:
"देखो, लगता है कि उसे किसी ने सही ढंग से कपड़े धोने का तरीका सिखा ही दिया। आज उसके धुले हुए कपड़े साफ़ हैं "
पति ने कहा, "आज सुबह मैंने जल्दी उठ कर अपने घर की सब खिड़कियों को साफ किया है - हमारे घर की खिड़कियाँ बहुत गंदी थीं।"
ये कहानी सुना कर बाबा जी ने कहा - बात ये नहीं थी कि उन कपड़ों को ठीक से धोया नहीं गया था या पड़ोसन को कपड़े धोने नहीं आते थे । वास्तव में वह खिड़की गंदी थी - जिसके माध्यम से वह देख रही थी।
उन्हों ने आगे कहा कि हमारे जीवन में भी कई बार ऐसी ही बातें होती हैं। हमअक्सर दूसरों को अपने मन की आँखों से देख रहे होते हैं इसलिए हमारा देखना भी हमारे विचारों पर निर्भर हो सकता है। जिस विचार से हम उन को देखते हैं वैसा ही हम समझ लेते हैं। वैसी ही धारणा बन जाती है। इसलिए, हर समय दूसरों को दोष देने के बजाय, हमें अपने आप की भी जांच करनी चाहिए - शायद हमें ही अपनी आंखों के चश्मे में लेंस को बदलने की जरूरत हो।
Very inspiring thoughts
ReplyDeleteExcellent story this is the only thing happening in every one of ours life
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