Monday, September 17, 2018

समझे थे कि तोड़ चुके हैं Samjhay thay ki tod chukay hain

रोज़  बढ़ते  हैं  कुछ क़दम आगे
लौट के मगर फिर वहीं  आ जाते हैं 
समझे थे कि तोड़ चुके हैं जो दीवारें 
उन्हीं से आके बार बार टकराते हैं 

Roz badhtay hain kuchh qadam aage
Laut ke magar phir vaheen aa jaatay hain 
Samjhay thay ki tod chukay hain jo divaarain 
Unhin say aakay baar baar takraatay hain



1 comment:

  1. दीवारें कितना सितम ढहती हैं

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