Wednesday, July 18, 2018

बे-मतलब नहीं ये नज़र के इशारे

नज़र नीची हुई तो हया बन गई 
नज़र ऊपर उठी तो दुआ बन गई 

नज़र उठ के झुकी तो अदा बन गई 
नज़र झुक के उठी तो सदा बन गई  

नज़र उलटी हुई - बददुआ बन गई 
नज़र तिरछी हुई तो ख़ता बन गई 

नज़र मिल गई तो नशा बन गई
नज़र  न उठी  तो नज़ा बन गई 

नज़र फिर गई तो सज़ा बन गई 
नज़र तन गई तो क़ज़ा बन गई 

नज़र नज़र का ही खेल है ये प्यारे 
बे-मतलब नहीं ये नज़र के इशारे 

नज़र में ही रहना, न गिरना नज़र से
नज़रे- करम से बनें काम सारे  

'राजन' दुआ ये ही हम मांगते हैं 
साक़ी की नज़रे करम मांगते हैं 

हया             शर्म 
सदा            आवाज़ 
ख़ता            ग़लती 
नज़ा            कमज़ोरी 
क़ज़ा           मौत 

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न समझे थे न समझेंगे Na samjhay thay Na samjhengay (Neither understood - Never will)

न समझे थे कभी जो - और कभी न समझेंगे  उनको बार बार समझाने से क्या फ़ायदा  समंदर तो खारा है - और खारा ही रहेगा  उसमें शक्कर मिलाने से क्या फ़ायद...