Tuesday, December 3, 2024

ज्ञान घटे अति दम्भ किए

ज्ञान घटे अति दम्भ किए और ध्यान घटे विषयन भरमाए
तेज घटे बहु क्रोध किए - सुख चैन घटे ईरखा उरझाए 

मोह घटे जब लोभ बढ़े और मित्र घटें निज महिमा गाए 
प्रेम घटे नित ही कुछ माँगत मान घटे निज हाथ फैलाए  

आयु घटे अनुचित भोजन स्यों बुद्धि घटे बिन पढ़े पढ़ाए 
आलस स्यों व्योपार घटे अभिमान घटे संताप के आए ***

दुर्जन के संग दुर्मति उपजे वैर विरोध घृणा बढ़ जाए  
दया घटे, सद्भाव घटे करुणा अनुकम्पा मन से जाए 

लोभ लालसा, स्वहित चिंता सत के मार्ग से भटकाए 
सीमित ज्ञान, अबोध की सम्मति बीच भंवर में नाव डुबाए  

                              ~~~~~~~~~~
                                  2.  समाधान

कर्म किए निर्धनता जाए - रोग मिटे कुछ औषधि खाए 
तिमिर मिटे जब दीप जले सब वैर मिटें जब मत्सर जाए 

मिटे कुबुद्धि सज्जन के संग - सद्बुद्धि सन्मति उपजाए 
सत का ज्ञान, संतन की संगत भवसागर से पार लगाए 

काम मिटे - तब राम मिले - जब राम मिले मन धीरज पाए   
चिंता क्षोभ मिटे मन स्यों जब निष्चल के संग ध्यान लगाए 

संतुष्टि से लोभ मिटे - जग-मोह मिटे हरि स्यों चित्त लाए 
देख असीम अहंकार मिटे और क्रोध मिटे मन को समझाए 

ब्रह्म मिले तो भ्रम मिटें - सब पाप कटें हरि नाम ध्याए 
सुन 'राजन' सुख चैन मिले जब छोड़ अनेक इक स्यों चित लाए 
                             " राजन सचदेव "

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दम्भ         =  अभिमान, अहंकार    Ego  
विषयन    =   विषय-विकार - Vices कामनाएं 
अबोध      =  अनभिज्ञ, अनजान Ignorant, Without knowledge 
तिमिर      =  अँधेरा 
मत्सर      =    ईर्ष्या, डाह, Jealousy
सद्बुद्धि    =  अच्छी बुद्धि  Good or Right knowledge, intelligence
सन्मति      =  अच्छी सोच - अच्छे एवं शुभ विचार  Good and auspicious thoughts 
 

* बहुत अधिक क्रोध व्यक्ति के अपने मन की शांति को भंग कर देता है - 
और परिणामस्वरुप उसकी आभा - चेहरे की कांति - चमक और लालित्य कम हो जाती है।
मन हर समय ईर्ष्या में उलझा रहे तो जीवन में आनंद और शांति कम हो जाती है।

** जब मन में लालच हावी हो जाता है तो भाई-बहनों और करीबी रिश्तेदारों के बीच भी प्यार और स्नेह समाप्त हो जाता है 
माता पिता और पूर्वजों की विरासत को बाँटने के समय अक़्सर परिवारों में लड़ाई-झगड़े शुरु हो जाते हैं।

हर समय अपनी प्रशंसा - अपने ही गुण बखान करते रहने से अंततः मित्र भी साथ छोड़ जाते हैं।

*** यदि दुःख- शोक संताप और बिमारी आ जाए तो बड़े बड़ों  का अभिमान और गर्व भी टूट जाता है। 

**** अनेक की बजाए एक पर एकाग्रता से ध्यान केंद्रित करने से ही जीवन में सफलता प्राप्त हो सकती है 

आमतौर पर हमारा मन सभी दिशाओं में भटकता रहता है - हम अपने आस-पास की हर वांछनीय वस्तु को प्राप्त करना चाहते हैं। 
लेकिन किसी भी इंसान के लिए हर वांछित वस्तु को पाना संभव नहीं है। 
और जब कोई चीज़ हमें नहीं मिलती या कोई घटना अथवा वातावरण हमारी इच्छा के अनुसार नहीं  होता - तो हम दुखी हो जाते हैं।

लेकिन जब हम एक सर्वशक्तिमान ईश्वर का ध्यान करने लगते हैं तो हमारा मन भटकना बंद कर देता है। 
यह स्थिर और संतुष्ट हो जाता है। 
बहुत सी अनावश्यक इच्छाएँ और लालसाएँ समाप्त हो जाती हैं - 
और अनायास ही जीवन में अधिक शांति और आनंद आने लगता है।
                             " राजन सचदेव "

11 comments:

  1. True Realities! Thanks a lot ji

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  2. Beautiful pearls of wisdom 🙏🙏

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  3. Dear Sir, Your poem feels like it is mirror through which I should judge my reflection. A guide to inner peace perhaps you have composed. I am still thinking about your poem, but these certainly are my initial thoughts.

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    1. I have been thinking further about your poem and the conclusion sentences particular resonate with me. I often try to do many things and it leaves an unsettling feeling because I know that I am pulling myself in multiple directions. Focusing on “one goal with undivided attention” is such a great reminder.

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  4. V v v v nice mahatma ji

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  5. 🙏Excellent.Absolutely true ji .Bahut hee Uttam aur shikhshadayak Rachana ji.🙏

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  6. Wah wah Atti uttam composition.🙏💕

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  7. Bohat Sunder bhav bohat Sunder shiksha g

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  8. Beautiful poem - so true!

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