रेत पे इक घर बना लेना अक़्लमंदी नहीं
हसद में ख़ुद को जला लेना अक़्लमंदी नहीं (ईर्ष्या की आग में)
सैर बेशक कीजिए इस दुनिया के बाज़ार की
लेकिन इस से दिल लगा लेना अक़्लमंदी नहीं
एक दिन तो छोड़ के सब को चले जाना है पर
आज ही दूरी बना लेना - अक़्लमंदी नहीं
दूसरों को आसमानों पर चढ़ाने के लिए
अपनी हसरत को मिटा लेना अक़्लमंदी नहीं
उड़ रहे इक और पक्षी को पकड़ने के लिए
हाथ में जो है गंवा लेना अक्लमंदी नहीं
बाँटने से ज्ञान अपना कम नहीं होता कभी
इल्म को पाकर छुपा लेना अकलमंदी नहीं
चार दिन की ज़िंदगी में ख़ामख़ाह ही दोस्तो
हर किसी की बद् दुआ लेना अक़्लमंदी नहीं
माज़ी को तो हम बदल सकते नहीं 'राजन' मगर
इस समय को भी गंवा लेना अक़्लमंदी नहीं
" राजन सचदेव "
हसद = ईर्ष्या
माज़ी = भूतकाल, बीता हुआ वक़्त
So beautiful. 🙏🙏
ReplyDeleteWaaaah waaaah waaah bahuttt baddiyaa
ReplyDeleteVery true 🙏
ReplyDeleteWaah waah ji, mukkamal
ReplyDeleteबहुत अच्छा खयाल है.🙏🙏
ReplyDeleteExcellent.Absolutely true ji .Bahut hee Uttam aur shikhshadayak Rachana ji.🙏
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