Thursday, December 5, 2024

शब्द गूंगे हो गए - इन्साफ अंधा हो गया

दर बदर जो थे वो गुलज़ारों के मालिक हो गए 
जो थे कल दरबान- दरबारों के मालिक हो गए 

शब्द गूंगे हो  गए  - इन्साफ अंधा हो गया 
सारे मुख़बिर आज अख़बारों के मालिक हो गए

देखते ही देखते बदल गई सारी फ़िज़ा 
जो बिकाऊ थे वो बाज़ारों के मालिक हो गए 

जो थे वफ़ादार उनके सर तो कलम हो गए 
और सब  गद्दार दस्तारों के मालिक हो गए 
                               (अज्ञात)

मुख़बिर   = ख़बर देने वाला, जासूस 
दस्तार    = पगड़ी, सरदारी 

11 comments:

  1. Very nice selection. thank you for sharing.

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  2. हसं चुनेगा दाना दुनका, कोऊआ मोती खाएगा

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    1. खाएगा नहीं - अब कव्वे ही मोती खा रहे हैं

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  3. Though the current world situation seems dire, there are always rays of hope shining through the darkness. May we bask in that divine light. 🙏🏼

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  4. Very nice ji Dhan Nirankar ji

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  5. Wah ji wah … todays reality in a nice poem

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    1. Waah ji Waah… truth via a great poem

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