दर बदर जो थे वो गुलज़ारों के मालिक हो गए
जो थे कल दरबान- दरबारों के मालिक हो गए
शब्द गूंगे हो गए - इन्साफ अंधा हो गया
सारे मुख़बिर आज अख़बारों के मालिक हो गए
देखते ही देखते बदल गई सारी फ़िज़ा
जो बिकाऊ थे वो बाज़ारों के मालिक हो गए
जो थे वफ़ादार उनके सर तो कलम हो गए
और सब गद्दार दस्तारों के मालिक हो गए
(अज्ञात)
मुख़बिर = ख़बर देने वाला, जासूस
दस्तार = पगड़ी, सरदारी
Very nice selection. thank you for sharing.
ReplyDelete👌
ReplyDeleteThe absolute truth
ReplyDeletewah ji wah
ReplyDeleteहसं चुनेगा दाना दुनका, कोऊआ मोती खाएगा
ReplyDeleteखाएगा नहीं - अब कव्वे ही मोती खा रहे हैं
DeleteThough the current world situation seems dire, there are always rays of hope shining through the darkness. May we bask in that divine light. 🙏🏼
ReplyDeleteVery nice ji Dhan Nirankar ji
ReplyDeleteWah ji wah … todays reality in a nice poem
ReplyDeleteWaah ji Waah… truth via a great poem
Delete100/ truth
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