Friday, September 8, 2023

मुट्ठी भर लोगों के हाथों लाखों की तक़दीरें हैं

मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन ज़ंजीरें हैं

आज और कल की बात नहीं है सदियों की तारीख़ यही है
हर आँगन में ख़्वाब हैं लेकिन चंद घरों में ताबीरें हैं

जब भी कोई तख़्त सजा है - मेरा तेरा ख़ून बहा है
दरबारों की शान-ओ-शौकत मैदानों की शमशीरें हैं

हर जंगल की एक कहानी वो ही भेंट वही क़ुर्बानी
गूँगी बहरी सारी भेड़ें चरवाहों की जागीरें हैं
                                     " निदा फ़ाज़ली "

सदियों की तारीख़   = सदियों का इतिहास 
ख़्वाब                    = सपने
ताबीरें                    = पूर्णता  - सपने पूरे होना 
शमशीरें                =  तलवारें 

2 comments:

झूठों का है दबदबा - Jhoothon ka hai dabdabaa

अंधे चश्मदीद गवाह - बहरे सुनें दलील झूठों का है दबदबा - सच्चे होत ज़लील Andhay chashmdeed gavaah - Behray sunen daleel Jhoothon ka hai dabdab...