आज गणपति विसर्जन दिवस है - एक बड़ा एवं प्रसिद्ध त्योहार - विशेषतया महाराष्ट्र में।
कई दिनों के उत्सव और गणपति की पूजा के बाद - भगवान गणेश की मूर्तियों को समुद्र या नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है - जो प्रियजनों और श्रद्धेयजनों को भी प्रसन्नता पूर्वक छोड़ देने का प्रतीक है।
आमतौर पर, गैर-हिंदू और यहां तक कि कई पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित हिंदू भी इस समारोह के पीछे के गहरे मनोवैज्ञानिक अर्थ को समझे बिना इस प्रथा या अनुष्ठान का मजाक उड़ाते हैं।
हर व्यक्ति को किसी भी प्रिय वस्तु अथवा प्रियजन के खो जाने से दुःख होता है।
हर चीज़ को हम हमेशा के लिए संभाल कर रखना चाहते हैं।
यह दिन हमें इस बात का एहसास कराता है कि संसार में कुछ भी या कोई भी स्थायी या अविनाशी नहीं है - कि प्रकृति हर चीज को बदलती और पुनर्चक्रित करती रहती है। यहां तक कि जो सिद्धांत एवं अवधारणाएं हमें बहुत प्रिय होती हैं वे भी हमेशा के लिए सत्य नहीं रह सकतीं।
यह अनुष्ठान एक परीक्षण है - स्वयं को तैयार करने का पूर्वाभ्यास - कि हमें अपने जीवन में किसी भी समय हर वस्तु को आसानी से छोड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए - यहां तक कि अपने श्रद्धेय एवं प्रियजनों को भी।
आइए हम सब इस प्रथा के वास्तविक अर्थ को समझें और जब भी कोई ऐसा समय आए - तो त्याग के लिए तैयार रहें। " राजन सचदेव "
Jai Ganesh Jai Ganesh Deva!
ReplyDeleteGanpati Bappa Moreya Agle Bars tu jaldi aa!
Hanji bilkul
ReplyDeleteWe need mental preparation for that.🙏
Om Shri ganeshaye Namah:
ReplyDeleteमैंने किसी के कमेन्ट का जवाब दिया था यह दिल से मूर्त को घड़ना स्थापित करना सजाना, पूजना, उत्सव मनाना, फ़िर विसर्जन कर देना यह जीवन मरण के चक्र को दर्शाता है। मैंने ओशो के साहित्य में पढ़ा था
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