Saturday, September 2, 2023

ज्ञान प्राप्ति के चार चरण

प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार, ज्ञान चार चरणों में प्राप्त होता है अथवा सीखा जाता है।

                                         आचार्यात् पादमादत्ते, पादं शिष्यः स्वमेधया
                                         पादं सब्रह्मचारिभ्यः, पादम् कालक्रमेण च
                                                             ~महाभारत, उद्योगपर्व~

ज्ञान का एक चौथाई हिस्सा शिक्षक अथवा गुरु से मिलता है 
और एक चौथाई भाग छात्र की अपनी बुद्धि, प्रतिभा और प्रयास से प्राप्त होता है। 
एक चौथाई साथी छात्रों की संगति में - 
और बाकी का चौथाई - समय के साथ अनुभव से प्राप्त होता है।

यह कथन ज्ञान प्राप्ति के हर क्षेत्र में सही प्रतीत होता है। 

यहाँ पादं शब्द को पूरी तरह से एक चौथाई के रुप में नहीं लिया जाना चाहिए। 
इसका अर्थ केवल यह है कि ज्ञान - एक नहीं बल्कि चार भागों या चरणों में प्राप्त होता है।
गुरु अथवा शिक्षक सभी विद्यार्थियों एवं जिज्ञासुओं को एक जैसा हे - समान ज्ञान देता है  
लेकिन प्रत्येक विद्यार्थी उसे अपनी प्रतिभा और समझ के अनुसार ग्रहण करता है - क्योंकि हर किसी की समझ और ग्रहण शक्ति का स्तर अलग-अलग होता है।

यही सिद्धांत आध्यात्म के मार्ग पर भी लागू होता है।
गुरु सभी को एक ही ज्ञान देते हैं।
कुछ लोग इसे तुरंत समझ जाते हैं जबकि कुछ अन्य को इसे समझने में अधिक समय लग सकता है।
हम संगत या सत्संग के रुप में साथी जिज्ञासुओं और अन्य साधकों की संगति में ज्ञान को  परिपक्व और सुदृढ़ कर सकते हैं।
अंततः, समय के साथ -  सुमिरन और ध्यान के माध्यम से हम अनुभव के साथ 'सत्य' को समझ और अन्तरसमाहित कर सकते हैं।
जैसा कि कहा गया है:
     
                             करत करत अभ्यास कै जड़मति होत सुजान
                             रसरी आवत जात ते सिल परत पड़त निसान
लगातार और निरंतर अभ्यास एक जड़मति  - कम बुद्धिमान व्यक्ति को भी बुद्धिमान बना देता है।
जिस प्रकार एक रस्सी को लगातार पत्थर पर रगड़ने से पत्थर पर भी एक गहरा निशान बन जाता है।
इसलिए, मुख्य एवं महत्वपूर्ण शब्द है - अभ्यास और ध्यान।
जिस तरह बार-बार अभ्यास करने से, अंततः, एक धीमी गति से सीखने वाला व्यक्ति भी अपने काम में निपुण बन सकता है।
इसी तरह, अभ्यास के साथ हम सुमिरन और ध्यान की गहराई में जा सकते हैं 
और जिस शाश्वत आनंद एवं शांति को प्राप्त करना चाहते हैं 
-  उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। 
                                       " राजन सचदेव "

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