भगवान कृष्ण के जन्मदिन को जन्माष्टमी के रुप में मनाया जाता है।
भगवान कृष्ण को न केवल ईश्वर का अवतार बल्कि 'जगत गुरु' भी माना जाता है।
उनकी शिक्षाओं पर संकलित 'भगवद गीता' दुनिया भर में धर्म से संबंधित सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तकों में से एक है - जिसने भारत में विकसित हुए सभी धर्मों - जैसे कि बौद्ध धर्म, सिख धर्म, भारतीय सूफ़ीवाद इत्यादि और उनकी सभी शाखाओं को प्रभावित किया और उनकी विचारधारा को रुप प्रदान किया।
कृष्ण के जन्म, बचपन और युवावस्था से संबंधित कई कहानियाँ हैं - जो शायद सच या तथ्यात्मक तो नहीं हो सकतीं - लेकिन उनमें कुछ महान संदेश और गहरे दार्शनिक अर्थ छुपे हुए हैं।
आइए - एक दो कथाओं का विश्लेषण करें।
जन्म
एक भविष्यवाणी थी कि एक दिन देवकी का पुत्र मथुरा के दुष्ट राजा कंस को मार डालेगा - और उसके अत्याचारों को समाप्त कर देगा।
इसलिए कृष्ण के माता-पिता - वासुदेव और देवकी को कंस ने एक छोटी सी अंधेरी काल कोठरी में डाल दिया था।
अंधेरी रात में एक सीमित जेल में कृष्ण का जन्म अंधेरे समय में आशा की किरण के रुप में प्रकट होता है।
साधारण अर्थों में - हमें ये याद रखना चाहिए कि जीवन के सबसे अंधेरे समय में भी - जब हम अपने आप को एक अपरिहार्य जेल में फंसा हुआ महसूस करते हैं - तो ऐसे समय में भी कोई सहायता या राहत किसी न किसी रुप में प्रकट हो सकती है और हमें उस गड्ढे से बाहर निकाल सकती है।
लेकिन इस कथा का दूसरा एवं गहन अर्थ यह है कि - भगवान अक्सर हमारे दुःख और अंधेरे समय में ही हमारे जीवन में प्रकट होते हैं।
आनंदमय पार्टियों और खुशी के उत्सवों में आनंद लेते हुए - खाते पीते और नाचते समय हम शायद ही कभी भगवान को याद करते हैं।
यह दुःख और निराशा का समय ही होता है जब हम गंभीरता से - अपने दिल की गहराई से पूरी ईमानदारी के साथ सर्वशक्तिमान तक पहुंचने और प्रार्थना करने का प्रयास करते हैं।
दूसरे शब्दों में - भगवान हमारे जीवन के दुखद और अंधेरे क्षणों के दौरान ही हमारे हृदय में जन्म लेते हैं।
ऊँचे लटकते हुए मटकों से माखन चुराना
बचपन में, कृष्ण को ऊँचे लटकते हुए मटकों से मक्खन चुराते या निकालते हुए दिखाया जाता है।
वह उस मटके तक पहुंचने के लिए सभी प्रकार के साधनों का - किसी कुर्सी अथवा स्टूल या सीढ़ी इत्यादि का उपयोग करते हैं - और कभी कभी अपने दोस्तों की पीठ पर चढ़ कर भी मक्खन के मटके को उतार लाते हैं।
मक्खन दूध का सार अथवा निचोड़ है - यह मानव जीवन के सार एवं सत्य का प्रतिनिधित्व करता है।
जैसे कृष्ण के घर में मक्खन का बर्तन ऊँचा लटका रहता था - उसी तरह सत्य हमारी चेतना के उच्चतम क्षेत्र में रहता है।
इसे प्राप्त करना कठिन तो है - लेकिन फिर भी - हर व्यक्ति को सत्य एवं जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
जिस तरह कृष्ण ने सीढ़ी इत्यादि और यहां तक कि मानव पिरामिड सहित सभी प्रकार के उपकरणों का उपयोग किया - हमें भी अपने समय में उपलब्ध हर उपकरण का उपयोग करके सत्य को समझने और धारण करने का प्रयास करना चाहिए। और इसके लिए धर्म ग्रंथों के अध्ययन के साथ साथ किसी समर्थ गुरु एवं संतो महांपुरषों का संग एवं सत्संग करना चाहिए।
ऐसी कई अन्य कहानियाँ हैं जिनमे कुछ गहरे और अद्भुत संदेश छुपे होते हैं - लेकिन वह तभी समझ में आ पाएँगे जब हम गहराई में उतर कर इन पौराणिक कहानियों के पीछे छिपे गहन अर्थों को समझने का प्रयास करेंगे।
और अंत में - कृष्ण के जीवन का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान है - युद्ध के मैदान में भगवद गीता के रुप में अर्जुन को व्यावहारिक धर्म की शिक्षा देना।
कृष्ण के जीवन का सार हर प्रकार की स्थिति में उनकी अटूट, दृढ - शांत एवं आनंदमयी भावना है।
हर प्रकार की प्रतिकूल स्थितियों में भी वह सदैव शांत और प्रसन्नचित्त रहते हैं।
दिव्यता, ज्ञान -विवेक, सत्य और धार्मिकता एवं न्यायप्रियता का प्रतीक हैं कृष्ण।
- यह वो गुण हैं जो हमारी आध्यात्मिक यात्रा को नया आकार दे सकते हैं और हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।
दुनिया भर में लाखों लोग इस दिन को कई अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं और इसका सम्मान करते हैं।
लेकिन जन्माष्टमी की सबसे बड़ी और उत्तम श्रद्धांजलि होगी भगवान कृष्ण की शिक्षाओं को समझना - सीखना और अपने जीवन में अपनाना - ताकि हम सच्ची धार्मिकता और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो सकें
" राजन सचदेव "
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