आज सुबह एक मित्र ने किसी कवि की सोशल मीडिआ के नाम लिखी एक हिंदी कविता भेजी।
कविता अच्छी लगी इसलिए सोचा कि इसे यहाँ पोस्ट करके सब के साथ शेअर किया जाए।
हो सकता है कि दो-चार लोग इस कविता की एक दो पंक्तियों से सहमत न हों लेकिन यह भी सत्य है कि हर व्यक्ति हर इक घटना को अपनी भावनाओं से देखता और समझता है और अपने विचारों के अनुसार ही उसे पेश करता है। यही बात सोशल मीडिया पर भी लागू होती है।
ज़ाहिर है कि इस कविता को भी लोग अपने अपने ढंग से पढ़ेंगे और समझेंगे लेकिन मेरे ख्याल में इस कविता के अंत में दिए गए परामर्श से तो सभी सहमत होंगे कि सोशल मीडिआ को अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर एवं निष्पक्ष हो कर देश और पत्रकारिता की सेवा करनी चाहिए। -- -- -- -- -- --- --- -- ---- --- -----
आज कलम का कागज से मै दंगा करने वाला हूँ
मीडिया की सच्चाई को मै नंगा करने वाला हूँ
मीडिया - जिसको लोकतंत्र का चौंथा खंभा होना था
खबरों की पावनता में - जिसको गंगा होना था
आज वही दिखता है हमको वैश्या के किरदारों में
बिकने को तैयार खड़ा है गली चौक बाजारों में
दाल में काला होता है तुम काली दाल दिखाते हो
सुरा सुंदरी उपहारों की खुब मलाई खाते हो
गले मिले सलमान से आमिर ये खबरों का स्तर है
और दिखाते इंद्राणी का कितने फुट का बिस्तर है
म्यॉमार में सेना के साहस का खंडन करते हो
और हमेशा दाउद का तुम महिमा मंडन करते हो
हिन्दू कोई मर जाए तो घर का मसला कहते हो
मुसलमान की मौत को मानवता पे हमला कहते हो
लोकतंत्र की संप्रभुता पर तुमने कैसा मारा चाँटा है
सबसे ज्यादा तुमने हिन्दु, मुसलमान को बाँटा है
साठ साल की लूट पे भारी एक सूट दिखलाते हो
ओवैसी को भारत का तुम रॉबिनहुड बतलाते हो
दिल्ली मे जब पापी वहशी चीरहरण मे लगे रहे
तुम ऐश्वर्या की बेटी के नामकरण मे लगे रहे
‘दिल से’ ये दुनिया समझ रही है खेल ये बेहद गंदा है
मीडिया हाउस और नही कुछ ब्लैकमेलिंग का धंधा है
गूँगे की आवाज बनो - अंधे की लाठी हो जाओ
सत्य लिखो - निष्पक्ष लिखो और फिर से जिंदा हो जाओ
(कवि - गौरव चौहान)
स्तोत्र - इंटरनेट
कविता भेजने वाले ने इसे लिखने का श्रेय किसी फ़िल्मी एक्टर के पिता को दिया है लेकिन इंटरनेट पर ढूंढ़ने से इसके लेखक का नाम गौरव चौहान मिला है।
कविता अच्छी लगी इसलिए सोचा कि इसे यहाँ पोस्ट करके सब के साथ शेअर किया जाए।
हो सकता है कि दो-चार लोग इस कविता की एक दो पंक्तियों से सहमत न हों लेकिन यह भी सत्य है कि हर व्यक्ति हर इक घटना को अपनी भावनाओं से देखता और समझता है और अपने विचारों के अनुसार ही उसे पेश करता है। यही बात सोशल मीडिया पर भी लागू होती है।
ज़ाहिर है कि इस कविता को भी लोग अपने अपने ढंग से पढ़ेंगे और समझेंगे लेकिन मेरे ख्याल में इस कविता के अंत में दिए गए परामर्श से तो सभी सहमत होंगे कि सोशल मीडिआ को अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर एवं निष्पक्ष हो कर देश और पत्रकारिता की सेवा करनी चाहिए। -- -- -- -- -- --- --- -- ---- --- -----
आज कलम का कागज से मै दंगा करने वाला हूँ
मीडिया की सच्चाई को मै नंगा करने वाला हूँ
मीडिया - जिसको लोकतंत्र का चौंथा खंभा होना था
खबरों की पावनता में - जिसको गंगा होना था
आज वही दिखता है हमको वैश्या के किरदारों में
बिकने को तैयार खड़ा है गली चौक बाजारों में
दाल में काला होता है तुम काली दाल दिखाते हो
सुरा सुंदरी उपहारों की खुब मलाई खाते हो
गले मिले सलमान से आमिर ये खबरों का स्तर है
और दिखाते इंद्राणी का कितने फुट का बिस्तर है
म्यॉमार में सेना के साहस का खंडन करते हो
और हमेशा दाउद का तुम महिमा मंडन करते हो
हिन्दू कोई मर जाए तो घर का मसला कहते हो
मुसलमान की मौत को मानवता पे हमला कहते हो
लोकतंत्र की संप्रभुता पर तुमने कैसा मारा चाँटा है
सबसे ज्यादा तुमने हिन्दु, मुसलमान को बाँटा है
साठ साल की लूट पे भारी एक सूट दिखलाते हो
ओवैसी को भारत का तुम रॉबिनहुड बतलाते हो
दिल्ली मे जब पापी वहशी चीरहरण मे लगे रहे
तुम ऐश्वर्या की बेटी के नामकरण मे लगे रहे
‘दिल से’ ये दुनिया समझ रही है खेल ये बेहद गंदा है
मीडिया हाउस और नही कुछ ब्लैकमेलिंग का धंधा है
गूँगे की आवाज बनो - अंधे की लाठी हो जाओ
सत्य लिखो - निष्पक्ष लिखो और फिर से जिंदा हो जाओ
(कवि - गौरव चौहान)
स्तोत्र - इंटरनेट
कविता भेजने वाले ने इसे लिखने का श्रेय किसी फ़िल्मी एक्टर के पिता को दिया है लेकिन इंटरनेट पर ढूंढ़ने से इसके लेखक का नाम गौरव चौहान मिला है।
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