जीवन -यात्रा
नीर बरसा कभी या धरा जलती रही
बर्फ गिरती रही और पिघलती रही
पात झड़ते रहे - कली खिलती रही
मौसम बदलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
कभी हँसते रहे - कभी रोते रहे
कभी जागा किए कभी सोते रहे
दिल धड़कता रहा सांस चलती रही
वक़्त कटता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
कुछ किताबें पढ़ीं - ज्ञान चर्चा सुनी
चित्त ने धारणाओं की चादर बुनी
कोई मिटती रही, कोई पलती रही
ज्ञान मिलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
मैं तस्वीर अपनी बनाता रहा
आईना कुछ और ही दिखाता रहा
प्रतिष्ठा की इच्छा पनपती रही
अहम बढ़ता रहा -उम्र ढ़लती रही !!
नज़र घटने लगी, बाल पकने लगे
जिस्म थकने लगा, दाँत गिरने लगे
कामना फिर भी मन में मचलती रही
चित्त चलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
खोया है क्या हमने पाया है क्या
क्या तोड़ा है 'राजन ' बनाया है क्या
ये चिंता हमेशा ही खलती रही
मन भटकता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
" राजन सचदेव "
बर्फ गिरती रही और पिघलती रही
पात झड़ते रहे - कली खिलती रही
मौसम बदलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
कभी हँसते रहे - कभी रोते रहे
कभी जागा किए कभी सोते रहे
दिल धड़कता रहा सांस चलती रही
वक़्त कटता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
कुछ किताबें पढ़ीं - ज्ञान चर्चा सुनी
चित्त ने धारणाओं की चादर बुनी
कोई मिटती रही, कोई पलती रही
ज्ञान मिलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
मैं तस्वीर अपनी बनाता रहा
आईना कुछ और ही दिखाता रहा
प्रतिष्ठा की इच्छा पनपती रही
अहम बढ़ता रहा -उम्र ढ़लती रही !!
नज़र घटने लगी, बाल पकने लगे
जिस्म थकने लगा, दाँत गिरने लगे
कामना फिर भी मन में मचलती रही
चित्त चलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
खोया है क्या हमने पाया है क्या
क्या तोड़ा है 'राजन ' बनाया है क्या
ये चिंता हमेशा ही खलती रही
मन भटकता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
" राजन सचदेव "
Beautiful summary of Life🙏
ReplyDelete