Sunday, December 1, 2019

जीवन-यात्रा

                         जीवन -यात्रा 

नीर बरसा कभी या धरा जलती रही
बर्फ गिरती रही और  पिघलती रही
पात झड़ते रहे - कली खिलती रही
मौसम बदलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!

कभी हँसते रहे  - कभी रोते रहे
कभी जागा किए कभी सोते रहे
दिल धड़कता रहा सांस चलती रही
वक़्त कटता रहा - उम्र ढ़लती रही !!

कुछ किताबें पढ़ीं - ज्ञान चर्चा सुनी
चित्त ने धारणाओं की चादर बुनी
कोई मिटती रही, कोई पलती रही
ज्ञान मिलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!

मैं  तस्वीर अपनी  बनाता  रहा
आईना कुछ और ही दिखाता रहा
प्रतिष्ठा की इच्छा  पनपती रही
अहम बढ़ता रहा -उम्र ढ़लती रही !!

नज़र घटने लगी, बाल पकने लगे
जिस्म थकने लगा, दाँत गिरने लगे
कामना फिर भी मन में मचलती रही
चित्त चलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!

खोया है क्या 
हमने पाया है क्या
क्या तोड़ा है 
'राजन ' बनाया है क्या 
ये  चिंता  हमेशा  ही  खलती  रही
मन भटकता रहा - उम्र ढ़लती रही !!

                        " राजन सचदेव "

1 comment:

When the mind is clear

When the mind is clear, there are no questions. But ... When the mind is troubled, there are no answers.  When the mind is clear, questions ...