लग़्ज़िशों से मावरा तू भी नहीं मैं भी नहीं
दोनों इंसाँ हैं ख़ुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं
तू मुझे और मैं तुझे इल्ज़ाम देता हूँ मगर
अपने अंदर झाँकता तू भी नहीं मैं भी नहीं
मस्लहत ने कर दिया दोनों में पैदा इख़्तिलाफ़
वर्ना फ़ितरत का बुरा तू भी नहीं मैं भी नहीं
चाहते दोनों बहुत इक दूसरे को हैं मगर
ये हक़ीक़त मानता तू भी नहीं मैं भी नहीं
जुर्म की नौइय्यतों में कुछ तफ़ावुत हो तो हो
दर-हक़ीक़त पारसा तू भी नहीं मैं भी नहीं
रात भी वीराँ - फ़सील-ए-शहर भी टूटी हुई
और सितम ये, जागता तू भी नहीं मैं भी नहीं
जान-ए-'आरिफ़' तू भी ज़िद्दी था अना मुझ में भी थी
दोनों ख़ुद-सर थे - झुका तू भी नहीं मैं भी नहीं
' सय्यद आरिफ़ '
लग़्ज़िश ग़लतियाँ , पतन , पथ से गिरना ,भूल
मावरा अलग, फ़ारिग, Free
मस्लहत सलाह - भले बुरे की सोच
इख़्तिलाफ़ विचार-भेद
नौइय्यतों विशेषता, ख़ासियत (Types or Kinds )
तफ़ावुत फ़ासला , फ़र्क़
पारसा पवित्र
फ़सील-ए-शहर शहर की चारदीवारी
अना घमंड, ग़रूर
ख़ुद-सर अपने आप में मस्त - मग़रूर
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