पुण्य के नाम पर किया जाने वाला ऐसा कोई भी कार्य महान नहीं कहा जा सकता जो दूसरों के लिए लाभकारी न हो -
जिस से किसी और को कोई लाभ न हो।
चाहे हम कितना भी समय उपवास में बिताएं, या कंद मूल खाएँ -
चाहे उमर भर ज़मीन पर सोते रहें - अपने शरीर को कष्ट देते रहें -
दीन दुखियों के लिए भाषण देते रहें - उनके दुःख में गीत गा गा कर रोते रहें --
यदि हम दूसरों के लिए कोई अच्छा काम नहीं करते तो ये सब व्यर्थ है - तो हम कुछ भी महान नहीं कर रहे।
धर्म के नाम पर किया हुआ ऐसा कोई भी कार्य जिस से किसी दूसरे का कोई फ़ायदा न हो - पुण्य नहीं कहला सकता।
स्वार्थ से रहित - निःस्वार्थ भाव से दूसरों के लिए किया गया कार्य ही पुण्य कहलाने का अधिकारी है।
जिस से किसी और को कोई लाभ न हो।
चाहे हम कितना भी समय उपवास में बिताएं, या कंद मूल खाएँ -
चाहे उमर भर ज़मीन पर सोते रहें - अपने शरीर को कष्ट देते रहें -
दीन दुखियों के लिए भाषण देते रहें - उनके दुःख में गीत गा गा कर रोते रहें --
यदि हम दूसरों के लिए कोई अच्छा काम नहीं करते तो ये सब व्यर्थ है - तो हम कुछ भी महान नहीं कर रहे।
धर्म के नाम पर किया हुआ ऐसा कोई भी कार्य जिस से किसी दूसरे का कोई फ़ायदा न हो - पुण्य नहीं कहला सकता।
स्वार्थ से रहित - निःस्वार्थ भाव से दूसरों के लिए किया गया कार्य ही पुण्य कहलाने का अधिकारी है।
Very true.
ReplyDelete