Friday, November 8, 2024

वो मुझ में मौजूद है फिर भी मैं उस से दूर हूँ

जानता हूँ कुछ नहीं हूँ - पर फिर भी मग़रुर हूँ
पाल के ख़ुशफ़हमियाँ दिल में अपने मसरुर हूँ 

है यही वजह कि 'राजन' मिल नहीं सकता उसे 
वो मुझ में मौजूद है - फिर भी मैं उस से दूर हूँ 
                                   " राजन सचदेव "

ख़ुशफ़हमियाँ   =  दिल को खुश रखने के लिए पाली हुई ग़लतफ़हमियां - 
       - ऐसी सोच या उम्मीद जिसकी कोई बुनियाद न हो लकिन अपने आप को तसल्ली देने के लिए दिल में बसाए रखें 
       - स्वयं को बहुत अच्छा और बड़ा समझने की ग़लतफ़हमी 
मसरुर         =  ख़ुश, प्रसन्न, उन्मत 

17 comments:

  1. Beautiful words of wisdom
    Ashok Chaudhary

    ReplyDelete
  2. Beautiful lines
    Regards Naveen Jakhar

    ReplyDelete
  3. कमाल का बयानं ए हकीकत

    ReplyDelete
  4. Exactly, don't know about why I am Maghroor!

    ReplyDelete
  5. Very nice 👍🏻

    ReplyDelete
  6. Beautiful 🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  7. सुन्दर पंक्तिया🙏jk

    ReplyDelete
  8. पूर्व मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात के हत्यारे से जज ने पूछा- "तुमने राष्ट्रपति सादात की हत्या क्यों की?"

    हत्यारे ने जवाब दिया- "क्योंकि वह सेक्युलर था।"
    जज ने तुरंत अगला सवाल किया- "सेक्युलर का मतलब क्या है?"

    हत्यारे ने कहा- "मुझे नहीं पता।"

    मृतक मिस्र के लेखक नगीब महफूज पर छुरा मारने की कोशिश करने वाले से जज ने पूछा- "तुमने नगीब साहब को छुरा क्यों मारा?"

    आतंकी ने जवाब दिया- "क्योंकि उसने धर्मविरोधी 'चिल्ड्रेन ऑफ गेबालावी' उपन्यास लिखा है।"

    जज ने रुचि दिखाई- "क्या तुमने उपन्यास पढ़ा है?"

    अपराधी ने जवाब दिया- "नहीं।"

    मिस्र के साहित्यकार फराग फौदा के हत्यारे से जज ने पूछा- "तुमने फराग फौदा को क्यों मार डाला?"

    हत्यारे ने जवाब दिया- "क्योंकि उसका ईमान नहीं था।"

    जज जानने के लिए उत्सुक हुए- "तुम कैसे समझे कि उसका ईमान नहीं था?"

    आतंकी का जवाब था- "उसकी किताबें पढ़ने से सब समझ आता है।"

    जज की जिज्ञासा और बढ़ गई- "उसकी किस किताब में तुमने उसकी ईमानहीनता का सबूत पाया?"

    हत्यारे ने स्वीकार किया- "मुझे किताब का नाम नहीं पता। मैंने वह सब नहीं पढ़ा।"

    जज आश्चर्यचकित हुए- "क्यों नहीं पढ़ा?"

    हत्यारे ने कहा- "मैं लिखना-पढ़ना नहीं जानता।"

    घृणा, कभी भी ज्ञान के माध्यम से नहीं फैलती। घृणा अज्ञानता के माध्यम से फैलती है। समाज अज्ञानता की कीमत, अज्ञानी बनाए रखने की कीमत, इसी तरह चुकाता है।

    'रियल अफ्रीकन बुक्स' से।

    ReplyDelete
  9. मैं से मुझ तक का फासला कुछ ज्यादा है।

    ReplyDelete

When the mind is clear

When the mind is clear, there are no questions. But ... When the mind is troubled, there are no answers.  When the mind is clear, questions ...