बदले बदले चेहरे अनजाने से लगते हैं
अपने भी अब कितने बेगाने से लगते हैं
वो ही मंज़र,दीवार-ओ-दर वो ही काशाने
ये रस्ते तो अपने पहचाने से लगते हैं
रहती थी हर वक़्त जहां रौनक दीवाली सी
अब वो महल चुबारे वीराने से लगते हैं
खुल जाता है भेद शमा के जलते ही उनका
शक़्ल-ओ-सूरत में जो परवाने से लगते हैं
दिल में जाने कितने दुःख छुपाए बैठे हैं
चेहरे से जो ग़म से अनजाने से लगते हैं
चेहरे से जो ग़म से अनजाने से लगते हैं
प्रेम हुआ फिर शादी और फिर जीवन भर आनंद
ये किस्से तो फ़िल्मी अफ़साने से लगते हैं
सुनते थे बचपन में जिसकी लाठी उसकी भैंस
अब ये किस्से जाने पहचाने से लगते हैं
जाने क्या देखा रिंदों ने साक़ी में 'राजन '
जिसको भी देखो वो दीवाने से लगते हैं
" राजन सचदेव "
मंज़र = दृश्य, परिदृश्य Scene, Scenario
दीवार-ओ-दर = दीवारें और दरवाजे Walls and doors
काशाने = इमारतें, मकान, भवन, Buildings
रिन्द = पीने वाले, पीने के शौक़ीन
Beautiful lines
ReplyDelete👍👌🎊wah ji wah👍
ReplyDelete🙏🙏👌👌
ReplyDeleteV v v nice Mahatma ji
ReplyDeleteWah!
ReplyDeleteAWESOME
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteNice 🙏🙏
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