यूं ही गर चलता रहा ये नफ़रतों का दौर
एक दिन इस आग में सब ही जल जाएंगे
मज़हबो-मिल्ल्त की दीवारें न गर हटीं
हर तरफ फिर लाशों के ही ढेर पाएंगे
कल अगर दुनिया में आदमी ही न रहा
सुख के ये सामान फिर किस काम आएंगे?
बात ये अब भी अगर न समझे हम 'राजन
धरती को प्रलय से फिर बचा न पाएंगे
" राजन सचदेव "
मज़हबो-मिल्ल्त = धर्म मज़हब साम्प्रदायिकता की दीवारें
wah ji wah
ReplyDeleteSo Beautiful
ReplyDelete🙏🙏
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