Thursday, October 12, 2023

ज्ञान का उद्देश्य है - सत्य का अनुभव

यदि हम बार बार  "अहं ब्रह्मास्मि - अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ -- 
अथवा मैं आत्मा हूँ - परमात्मा का अंश हूँ ' - इत्यादि कहते रहें -
तो क्या केवल कहने मात्र से ही हम ब्रह्म रुप हो जाएंगे?

विवेक चूड़ामणि में शंकराचार्य कहते हैं -  
' मैं राजा हूं - मैं राजा हूँ " - केवल इसका रटन करने से ही कोई राजा नहीं बन जाता।
राजा बनने के लिए शत्रु को विजय करना पड़ता है।
अध्यात्म में शत्रु का अर्थ है - अज्ञान।
सत्य का अनुभव करने के लिए अज्ञान का विनाश करना आवश्यक है -
आँखों से अज्ञान का पर्दा हटाना ज़रुरी है।

कैसी विडंबना है कि हम ग्रंथों में सत्य की परिभाषा पढ़ लेते हैं -
सत्संग में संतों से एवं गुरु जनों से सत्य की चर्चा सुन लेते हैं -
यहां तक कि हम सत्य पर भाषण भी दे लेते हैं
लेकिन जब तक हमें स्वयं सत्य का अनुभव नहीं होता तो पढ़ना सुनना और कह देना - 
ये मात्र बुद्धि के व्यायाम से अधिक और कुछ नहीं है।
सत्य को पूर्ण रुप से समझना और अनुभव करना ही ज्ञान का उद्देश्य है।
                               " राजन सचदेव "

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Jo Bhajay Hari ko Sada जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा

जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा  Jo Bhajay Hari ko Sada Soyi Param Pad Payega