आशा हमदर्दी की थी इक भ्रष्टाचारी से
न्याय मांग रहा था झूठों के प्रभारी से
मुश्किल है रिश्वत या चापलूसी के बग़ैर
काम करवा लेना कोई इक अधिकारी से
मौक़ा मिलते ही उठा लेते हैं फ़ायदा
मज़लूम-ओ-बेबस ग़रीबों की लाचारी से
और भला क्या निकलेगा ये सोचिए ज़रा
सांप ही निकलेंगे सांपों की पिटारी से
कैसे होतीं पूर्ण 'राजन' मन की आशाएँ
हीरा मांग रहा था कोयले के व्यापारी से
" राजन सचदेव "
प्रभारी = In charge अफ़सर
मज़लूम-ओ-बेबस = सताए हुए - लाचार
Diamonds, come from Coal Mines i was told. But this trader must have kept for himself. Jokes aside..the poem flows well.
ReplyDeleteThank you Vishnu ji --
Deleteand you are right - I did say Coal merchants - not coal mines....😊😊🙏
विष्णु जी के टिपणी पर मेरा भी यही ,हीरा खदानों से न की कोयला व्यपारी से
DeleteVery well said 🙏🙏🙏🙏🌹
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteWah ji 👍🎊🙏
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteBeautiful 🙏🙏
ReplyDelete🙏Excellent ji. Bahut hee sunder Rachana. 🙏
ReplyDeleteTrue !
ReplyDeleteउत्कृष्टता
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना
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