बिनु संतोष न काम नसाहीं।
काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं॥
राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा।
थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा॥
राम चरित मानस
अर्थात: संतोष के बिना कामनाओं का नाश नहीं होता।
और कामनाओं के रहते स्वप्न में भी सुख नहीं मिल सकता।
क्या राम अर्थात परमेश्वर के ध्यान एवं भजन के बिना कामनाएँ मिट सकतीं हैं?
- क्या बिना धरती के भी कहीं पेड़ उग सकता है?
यदि मन में संतोष न हो तो हर क्षण नई नई कामनाएं जन्म लेती रहती हैं -
और अधिक से अधिक प्राप्त करने की लालसा और लोभ कभी समाप्त नहीं होता।
तुलसीदास जी कहते हैं कि जैसे एक पेड़ को उगने और स्थिर रहने के लिए धरती का आधार चाहिए
उसी तरह मन में संतोष लाने के लिए हमें भी किसी आधार की ज़रुरत पड़ती है
और वो आधार है प्रभु का ध्यान और सुमिरन।
परमेश्वर के ध्यान एवं भजन के बिना कामनाएँ नहीं मिटतीं और मन में संतोष का भाव पैदा नहीं होता।
प्रभु सुमिरन में जितना अधिक ध्यान लगेगा - मन में उतना ही संतोष बढ़ता चला जाएगा।
गुरबाणी भी यही संदेश देती है :
" बिना संतोख नहीं कोउ राजै - सुपन मनोरथ बिरथे सब काजै
नाम रंग सरब सुख होय - बड़भागी किसै परापति होय "
(सुखमनी साहिब)
अर्थात संतोष के बिना कभी तृप्ति नहीं हो सकती
और नाम के रंग से ही मन में संतोष एवं सुख प्राप्त हो सकता है।
और ये नाम का रंग सौभाग्य से ही प्राप्त होता है।
" राजन सचदेव "
Bohat Sunder sikhsha
ReplyDeletesteek formula hai ji Dhan nirankar mahatma ji 🙏
Thanks uncle ji 🙏
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVastavikta yahe hai ji
ReplyDeleteBeautiful 🙏
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