Monday, August 27, 2018

मैं सोचता था .....

मैं सोचता था ..... 
मेरे कमरे में इतनी घुटन सी क्यों है 
आख़िर मेरी आँखों में इतनी जलन सी क्यों है 
इस घर की चारदीवारी में सभी कुछ तो है 
पर फिर भी मेरे मन में एक चुभन सी क्यों है 

फिर अचानक इक ख्याल आया 
    और मैंने उठ के देखा 
          कि मेरे घर की सब खिड़कियाँ 
                              सब दरवाजे थे बंद 
खिड़कियों के शीशों में से बाहर जो दिखता था 
वो अच्छा नहीं लगता था 
            क्योंकि उन शीशों पर चढ़े थे रंग 
और उन रंगीन शीशों में से  
जब मैं बाहर देखता था 
           तो सब धुंधला सा लगता था 
कुछ भी साफ़ नहीं दिखता था  
       कुछ भी अच्छा नहीं लगता था 
इसलिए मैंने -
बाहर निकलना ही छोड़ दिया 
दुनिया क्या है - कैसी है 
          ये देखना ही छोड़ दिया 

मैं घर की चारदीवारी में ही 
                              क़ैद हो के रह गया 
बस मैं, और मेरा घर अच्छा है -
अहम की इस भावना में बंध के रह गया 
संकीर्णता की ऊंची नीची लहरों पर इतराता हुआ 
मंज़िल से बहुत दूर कहीं - 
                         अनजाने में बह गया 

लेकिन एक दिन -
अचानक -
       मेरे कानों में एक आवाज़ आई 
 मन के दरवाजे पर -
  जैसे स्वयं प्रभु ने दस्तक दी - 
                       और ये बात समझाई 
कि सब कुछ - और सभी को  
       हमेशा इन रंगीन शीशों में से मत देखो 
 दुनिया इतनी बुरी नहीं है
            घर से बाहर ज़रा निकल कर देखो 

पहले तो मैं सहमा - कुछ डरा 
लेकिन फिर हिम्मत कर के 
                          इक खिड़की को खोला 
फिर डरते डरते आहिस्ता से दरवाजा खोला 
अचानक ताज़ी हवा का इक झोंका अंदर आया 
और मेरा हाथ पकड़ के मुझे बाहर खींच लाया 

बाहर निकल के देखा - तो ये पता चला 
कि मैं समझता था जैसी  -
दुनिया वैसी है नहीं 
हर तरफ ही वैर विरोध और नफ़रत हो 
बात असल में ऐसी है नहीं 

हाँ - कहीं कहीं नफ़रत के शोले उठते रहते हैं 
मज़हब के चंद नेता - 
      अपने स्वार्थ की ख़ातिर 
भोले भाले लोगों को बहकाने की ख़ातिर 
अक़सर अपनी तक़रीरों में ज़हर उगलते रहते हैं 
सुनके जिनको लोगों के विचार बदलते रहते हैं 

लेकिन फिर भी - 
                  हर बंदे के दिल में बैर नहीं है
देंगे प्रेम - तो प्रेम मिलेगा 
                सब अपने हैं - कोई  ग़ैर नहीं है 

तब से मैंने अपने घर की 
सब खिड़कियां - 
               सब दरवाजे खोल दिए 
शीशों पर जो रंग चढ़े थे  
वो सारे रंग उतारे - परदे खोल दिए 
ताज़ी हवा के आने से 
         अब घर के अंदर घुटन नहीं है 
रंग नहीं है शीशों पर  
         तो आँखों में भी जलन नहीं है 
अंदर बाहर सब अच्छा है  
       मन में अब कोई चुभन नहीं है 

और आज समझ में आया है  - 
जीवन का भेद ये पाया है - 
कि खुले आसमां सी जब हो जाती है द्रिष्टि !
'राजन ' सुंदर हो जाती है सारी  सृष्टि !!
                        'राजन सचदेव '

7 comments:

  1. How beautiful and meaningful. Thanks.

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  2. Last two lines beautifully sums up all. What a solace and peace I feel when I spread my arms towards the starry sky 🌌 to breath in the full universe into me to own it all.

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  3. 👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼वाह !

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  4. Very nicely expressed your thoughts. Love it.

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  5. Beautiful Rajan ji .... it’s improtant that we don’t box ourselves and look down on others .... instead we approach everyone with an open mind .... Thanks for penning this down 🙏🙏

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