Wednesday, February 7, 2018

सुख क्या है, इक परछाई है

सुख क्या है, इक परछाई है
ये हाथ किसीके ना आई है
मुठ्ठी मे रेत भरी जैसे,
खोलें तो ख़ाली पाई है
सुख क्या है, इक परछाई है

क्या हो जाना धनवान है सुख ?
रिश्ते नाते सन्तान है सुख ?
या महल मकान दुकान है सुख ?
क्या सुख के ये सामान है सुख ?
फिर इनको पाकर के भी क्यों ?
ऊपर तक जाकर के भी क्यों ?
लगता है कुछ नही पाया है 
असली सुख अभी बकाया है 
इक झलक नज़र तो आई है 
पर हाथ मे कुछ ना आया है 
जबसे ही होश सम्भाला है
इक लम्बी दौड़ लगाई है
इस सुख को पाने की ख़ातिर
रातों की नीन्द गवाई है
सुख क्या है इक परछाई है

है आस उसकी जो पास नहीं 
जो पास उसका एहसास नहीं
जब तक रुकते ये स्वास नहीं
बुझने वाली ये प्यास नहीं
तृष्णा ने बहुत दौड़ाया है
तरसाया है तड़पाया है
कुछ पाने की इस हवस में तो
जो पास है वो भी गंवाया है
आँखों मे नश्तर की भाँति
क्यों चुभता है दूजे का सुख
क्यूं देख के उसकी खुशहाली 
सुख अपना बन जाता है दुख 
ये तुलना चलती आयी है
चाहे शत्रु है चाहे भाई है
सांझेदारी है नहीं  इस में  
हर इंसान एक इकाई है   
सुख क्या है, इक परछाई है

क्या सुख इतना क्षणभंगुर है
जैसे कोई शीशे का घर है
दुख का इक कंकर सह ना सके 
इतना कमजोर है - जर्ज़र है
सुख पल भर ही क्यों आता है ?
ये साथ में दुख क्यों लाता है ?
पहले थे दुखी, ये आ जाये 
और अब हैं दुखी ये ना जाये
चाहे जतन अनेकों कर ले कोई 
झोंके कब हवा के रुक पाये
जब जब भी लेना चाहा सुख 
ये हमसे आँख चुराता रहा 
जब जब भी देना चाहा सुख
ये सहज ही पास मे आता रहा 
ये वो दौलत है, जो जितनी बाँटी, 
उतनी ही पायी है
सुख कया है, इक परछाई है

माया से तोलते रहते हैं 
सुख महँगा है ना सस्ता है
हम बाहर खोजते रहते हैं
और ये भीतर ही बसता है
ना दौलत से ना ताक़त से
ना ज़ोर ज़बर से मिलता है
ये वो कमल है जो जल में 
संतोष सबर के खिलता है 
सतगुरु ने समझाया 'दिलवर '
तो बात समझ ये आई है
आसक्ति दुख का कारण है 
और राम नाम सुखदायी है
गर सुख को हम चाहें सदा
तो शरण राम की ले लेवें
इनके चरणों मे हम अपना
तन मन धन अर्पण कर देवें
भक्ति ही सुख की कुँजी है
भक्ति का सुख ही स्थायी है 
ये उसके हिस्से आया है 
जो रब्ब का बना सौदाई है
सुख क्षणिक नही सुख स्थायी है
सुख रब्ब की ही परछाई है
सुख क्षणिक नही सुख स्थायी है
सुख रब्ब की ही परछाई है
                     " दिलवर - मुम्बई "


No comments:

Post a Comment

मन मैला तन ऊजरा Man Maila Tan Oojara

मन मैला तन ऊजरा, बगुला कपटी अंग।  तासे तो कौआ भला, तन मन एक ही रंग ॥                  संत कबीर जी महाराज  Man Maila Tan Oojara -  Bagula Kap...