Wednesday, May 5, 2021

पुण्यतिथि - भापा राम चंद जी कपूरथला

                                          शत शत नमन
                  मेरे इस जीवनकाल में मिली सबसे उत्कृष्ट आत्मा 
                   और सबसे बड़े प्रेरणा स्तोत्र को लाखों प्रणाम
                 जो  5 मई, 1970 को इस नश्वर संसार से विदा हुए 
                                       
मुझे याद है कि एक बार पूज्य भापा राम चंद जी ने अपने प्रवचन में भाई गुरदास जी के एक पद की कुछ पंक्तियों का ज़िकर किया था:
                                    "गुरमुख गाडी राह चलंदा "
उन्होंने समझाया कि एक भक्त का मार्ग एक गाडी (रेलवे ट्रेन) की तरह है जो एक स्थाई रेलमार्ग अर्थात बनी हुई पटरियों पर ही चलती है। यदि वह अपनी पटरी से उतर जाए तो अपने गंतव्य स्थान - अपनी मंज़िल पर नहीं पहुंच सकती।
भापा जी ने आगे बताया कि ट्रैक या पटरी का अर्थ ग्रंथों और शास्त्रों में लिखे गए मार्ग-निर्देश हैं।
जिन ऋषि-मुनियों, संतों और गुरुओं ने सत्य की खोज की - सत्य का अनुभव किया - सत्य के मार्ग पर चल कर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया उन्होंने अपने अनुभव लिख कर आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करने का यत्न किया। 
हमें उनके द्वारा दिए हुए दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए और उनके दिखाए मार्ग पर इस तरह चलना चाहिए जैसे एक रेलगाड़ी अपने लिए बनाई गई पटरी पर सीधी चलती रहती है - इधर उधर नहीं होती।”

सत्संग के बाद, मैंने नम्रता पूर्वक उनसे पूछा:
भापा जी ! भाई गुरदास जी के समय में तो कोई ट्रेन नहीं थी। 
उन दिनों कोई रेल की पटरियाँ भी नहीं थीं। 
फिर उन्होंने इस तरह का उदाहरण कैसे दिया ?

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा: क्या तुम कभी किसी गाँव में या खेतों में गए हो ?
मैंने कहा - हाँ भापा जी। कई बार गया हूँ।

“ तो तुमने मेन सड़क से गाँव की ओर जाने वाले या गाँव से खेतों में जाने वाले कच्चे रास्तों पर दो समानांतर (Parallel) गहरी लकीरों को भी ज़रुर देखा होगा।
किसी ने उन्हें बनाया नहीं । जब बैल गाड़ियाँ इन संकरे कच्चे रास्तों पर हर रोज़ चलती हैं, तो धीरे धीरे उनके पहियों से ये पटरियां अपने आप बन जाती हैं । समय के साथ, ये ट्रैक - ये पटरियां इतनी गहरी और ठोस हो जाती हैं कि एक बार बैलगाड़ी का चालक बैलों को हाँक कर गाडी के पहिए उन लाइनों यानि पटरियों में डाल देता है तो गाड़ी उसी लकीर पर चलती रहती है। फिर मालिक या चालक को इधर उधर मुड़ने के लिए बैलों की रस्सी खींचनी नहीं पड़ती।

जब भाई गुरदास जी ने गाडी-राह कहा था वो बैल गाड़ियों के ट्रैक के बारे में कह रहे थे।
फिर भापा जी ने समझाया कि अब यह उदाहरण आज की रेल पटरियों पर पूरी तरह से फिट बैठता है जो इन दिनों हर किसी के लिए समझना आसान है। ख़ास तौर से बच्चे, जवान और शहरी लोग - जिन्होंने बैलगाड़ियों द्वारा बनाए गए ट्रैक कभी नहीं देखे होंगे - उनको अगर रेलगाड़ी की पटरी कह कर समझाया जाए तो वो बात जल्दी और अच्छी तरह समझ लेंगे "।

उस दिन मैंने सही रास्ते पर चलने के महत्व के साथ साथ ये भी सीखा कि पुराने रुपकों - उदाहरणों को अनुवाद करते समय वर्तमान तकनीक और आज की जीवन शैली का भी ध्यान रखना चाहिए।
जो चीज़ें नई टेक्नीक के साथ बदल चुकी हैं - जो आज दिखाई नहीं देतीं उन की मिसालें देने से आज के लोग - विशेषतया नौजवान हमारी बात को सही ढंग से समझ नहीं पाएंगे।

इसलिए पुरानी मिसालों को नए ढंग से पेश करने की ज़रुरत है - उन मिसालों के साथ जिन्हें आज के श्रोताओं ने देखा हो - जो उनसे संबंधित हों - ताकि वो उन्हें आसानी से समझ सकें।
                                            ' राजन सचदेव '

2 comments:

Khamosh rehnay ka hunar - Art of being Silent

Na jaanay dil mein kyon sabar-o-shukar ab tak nahin aaya Mujhay khamosh rehnay ka hunar ab tak nahin aaya Sunay bhee hain, sunaaye bhee hain...