Monday, May 31, 2021

समंदर और पक्षी के बच्चे

एक बहुत ही पुरानी मगर दिलचस्प कहानी है। 

कहते हैं कि एक बार समंदर ने एक पक्षी के बच्चों को निगल लिया। 
पक्षी ने समंदर से अपने बच्चों को लौटाने के लिए प्रार्थना की - 
लेकिन समंदर ने इंकार कर दिया। 
पक्षी ने क्रोध से अपने पंख फड़फड़ाते हुए कहा कि अगर समंदर ने उसके बच्चे वापिस नहीं किए तो वो उसे सुखा देगा। 
उसकी बात सुन कर समंदर हंसा। 

पक्षी समंदर की सतह पर उड़ते हुए जोर जोर से पंख फड़फड़ा कर उसे सुखाने का प्रयत्न करने लगा। 
 
एक दूसरे पक्षी ने ये देखा - तो उससे पूछा कि वो क्या कर रहा है ?
उसने कहा कि समंदर ने मेरे बच्चे निगल लिए हैं - मैं इसे सुखा दूँगा। 
दूसरा पक्षी कहने लगा कि ये तो संभव ही नहीं है। 
ये समंदर इतना विशाल है और तुम इतने छोटे। 
पहले पक्षी ने जवाब दिया - 
'अगर तुम कुछ सहायता करना चाहते हो तो करो वरना ख़ामख़ाह की बातें मत करो।  
ये सुनकर दूसरा पक्षी भी उसके साथ अपने पंख फड़फड़ा कर समंदर को सुखाने लग गया।  

उन्हें देखकर बहुत से और पक्षी  इकठ्ठे हो गए 
उनके पूछने पर दूसरे पक्षी ने कहा कि समंदर ने इसके बच्चे निगल लिए हैं - अब हम इसे सुखा देंगे। 
उन पक्षियों के झुण्ड ने भी वही बात कही कि ये तो असंभव है - तुम सारी उमर भी लगे रहो तो समंदर को सुखा नहीं पाओगे। 
उन दोनों पक्षियों ने कहा कि अगर तुम कुछ सहायता कर सकते हो तो करो वरना ख़ामख़ाह की बातें मत करो।   
ये सुन कर वो सब पक्षी भी उन का साथ देने के लिए तैयार हो गए। 
धीरे धीरे और पक्षी आते रहे और वही बात कहते रहे - और उन्हें वही जवाब मिलता रहा  - 
'अगर तुम कुछ सहायता कर सकते हो तो करो वरना ख़ामख़ाह की बातें मत करो। 
देखते ही देखते वहां करोड़ों पक्षी इकठ्ठे मिल कर समंदर को सुखाने के लिए पंख फड़फड़ाने लगे। 

आखिर ये बात पक्षीराज गरुड़ तक पहुँच गई। 
गरुड़ ने भी कहा कि करोड़ों पक्षी मिल कर भी समंदर को नहीं सुखा सकेंगे। इसलिए प्रयत्न करना बेकार है। 
और उन्हें भी वही जवाब मिला - अगर तुम कुछ सहायता कर सकते हो तो करो वरना ख़ामख़ाह की बातें मत करो। 
ये सुनते ही गरुड़ भी उनकी सहायता के लिए चलने को तैयार हो गए। 

उसे जाते देख कर भगवान विष्णु ने पूछा " कहाँ जा रहे हो?
गरुड़ ने सारी बात बताई तो भगवान विष्णु ने कहा - क्या तुम समझते हो कि पक्षियों के लिए समंदर को सुखाना सम्भव है ?
गरुड़ ने कहा - महाराज अगर आप कुछ सहायता कर सकते हो तो करो वरना ख़ामख़ाह की बातें मत करो। 
ये सुन कर भगवान हँस कर बोले - 'तो ठीक है - चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। 

गरुड़ पर बैठे हुए भगवान विष्णु को आते देख कर समंदर डर गया। 
उसने झट से पक्षी के बच्चे वापिस किए और हाथ जोड़ कर क्षमा प्रार्थना करने लगा।  

कहानी बेशक़ दिलचस्प और अमाननीय है लेकिन अंततः एक गहरा संदेश देती है। 
आज भारत पर एक गहरे संकट के बादल मंडरा रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि पूरा देशी एवं अंतर्राष्ट्रीय सोशल मीडिया कुछ सहायता करने की बजाए केवल दोषारोपण और अफवाहें फैलाने में व्यस्त है। 

यह समय दोषारोपण का नहीं बल्कि मिलजुल कर - एकजुट हो कर कुछ करने का है। आज भी उन पक्षियों की बात समयोचित - समय के अनुकूल और उचित लगती है कि अगर कुछ कर सकते हो तो करो वरना ख़ामख़ाह की बातें मत करो।
 
मानवता किसी धर्म, समाज, पॉलिटिकल पार्टी अथवा संस्कृति पर आधारित नहीं होती। कुछ लोग ऐसे योगदान के कार्यों को भी केवल अपने तथाकथित धर्म और समाज को दूसरों से ऊँचा और बेहतर दिखाने के प्रचार प्रसार में ही लगे हुए दिखाई देते हैं। 
वो भूल जाते हैं कि असली धर्म का आधार कोई विशेष जाति अथवा समुदाय नहीं - बल्कि मानवता है।  
             न हिंदू न सिख ईसाई न हम मुसलमान हैं 
            मानवता है धर्म हमारा हम केवल इंसान हैं 

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