Thursday, December 3, 2015

कुछ पढ़ के सो Kuchh Padh ke So

कुछ लिख के सो, कुछ पढ़ के सो 
कुछ रच के सो, कुछ गढ़ के सो  
जिस जगह जागा था तू सुबह 
उस जगह से कुछ आगे बढ़ के सो 
                    ' अज्ञात '


Kuchh likh ke so, Kuchh padh ke so 
Kuchh rach ke so, kuchh gadh ke so 
Jis jagah jaaga tha tu subah
Us jagah se kuchh aage badh ke so 

                        (Writer unknown)

4 comments:

  1. Thank you Vibhash Sureka ji for the update.
    Rajan Sachdev

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  2. बंधु अब तो अज्ञात कहा रहा

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  3. कुछ लिख कर वाली कविता भवानी प्रसाद मिश्र जी की है

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