लोग मिलते - और बिछड़ते रहे
उमर भर ये सिलसिला चलता रहा
कभी सबरो-शुकर का आलम रहा
और कभी शिकवा गिला चलता रहा
मिल सके न कभी किनारे दरिया के
दरमियाँ का फ़ासला चलता रहा
जिस्म का हर अंग साथ छोड़ गया
साँसों का पर काफ़िला चलता रहा
कौन रुकता है किसी के वास्ते
मैं गिरा- तो काफ़िला चलता रहा
मंज़िल वो पा लेता है 'राजन' कि जो
रख के दिल में हौसला चलता रहा
'राजन सचदेव'
16 दिसंबर 2015
नोट :
ये चंद शेर अचानक मेरे ज़हन में उस वक़्त उतरे जब मैं श्री रमेश नय्यर जी को hospice में देख कर वापिस आ रहा था। नय्यर जी और उनके परिवार से मेरा संबन्ध तब से है जब वो पठानकोट में रहते थे और मै जम्मू में।
उमर भर ये सिलसिला चलता रहा
कभी सबरो-शुकर का आलम रहा
और कभी शिकवा गिला चलता रहा
मिल सके न कभी किनारे दरिया के
दरमियाँ का फ़ासला चलता रहा
जिस्म का हर अंग साथ छोड़ गया
साँसों का पर काफ़िला चलता रहा
कौन रुकता है किसी के वास्ते
मैं गिरा- तो काफ़िला चलता रहा
मंज़िल वो पा लेता है 'राजन' कि जो
रख के दिल में हौसला चलता रहा
'राजन सचदेव'
16 दिसंबर 2015
नोट :
ये चंद शेर अचानक मेरे ज़हन में उस वक़्त उतरे जब मैं श्री रमेश नय्यर जी को hospice में देख कर वापिस आ रहा था। नय्यर जी और उनके परिवार से मेरा संबन्ध तब से है जब वो पठानकोट में रहते थे और मै जम्मू में।
Very well said our dear Rajan Sachdeva Jee . Urs. Premjit Singh
ReplyDeleteThank you ji
ReplyDeleteThanks. Good thought.
ReplyDeleteRegards
Harvinder
How true! We have to keep going no matter what. Thanks.
ReplyDeleteभाई साहिव जी वहुत बडिया
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