ये हयात फ़क़त बहरे हादसात ही तो है
और मौत ग़मे-ज़ीस्त से निजात ही तो है
बहते हैं आँख से अगर आँसू तो बहने दे
बादल से हो या आँख से बरसात ही तो है
मायूस है क्यों ऐ दिले बे सबर, इस क़दर
आख़िर गुज़र ही जाएगी ये रात ही तो है
जैसी गुज़र रही है ज़िंदगी - गुज़ार लो
सोचो ज़रा ये चार दिन की बात ही तो है
न देख किसी ग़रीब को नफ़रत की आँख से
वो भी तो आख़िर आदमी की ज़ात ही तो है
वो है अगर ग़रीब तो उसका है क्या क़सूर
वो ज़ेरे - बारे - गर्दिशे - हालात ही तो है
क़ुदरत ने बख़्शी है अगर ' राजन ' ये ज़िंदगी
तो मौत भी क़ुदरत की इक सौग़ात ही तो है
' राजन सचदेव '
17 दिसंबर 2015
(on the death of an old acquaintance)
(on the death of an old acquaintance)
हयात : ज़िंदगी Life
बहरे-हादसात : घटनाओं का बहाव - घटनाओं का समंदर Sea or flow of Incidents
ग़मे-ज़ीस्त : ज़िंदगी के दुःख Pains and Sufferings of life
निजात : मुक्ति, छुटकारा Release, Relieved, Discharged, Freedom
ज़ात : आस्तित्व Being
सौग़ात : तोहफ़ा , भेंट Gift
ज़ेरे-बारे-गर्दिशे-हालात : बुरे हालात के भार के नीचे दबा हुआ - Downtrodden, Defeated, oppressed by - or buried under the weight of unfavorable circumstances
Very nice. Thanks.
ReplyDeleteVery nicely written poem, Rajan Ji.
ReplyDeleteVishnu