Thursday, July 25, 2024

जज़्बात-ओ-जुनूं की लहरों में

अक़्सर हम जज़्बात-ओ-जुनूं की लहरों में बह जाते हैं
कुछ  बेमानी  रस्मो-रिवायत  में  बंध के रह जाते हैं

क्यों लोगों की बातें सुन के दिल ढ़ेरी हो जाता है 
क्यों सपनों के महल हमारे इक पल में ढ़ह जाते हैं 

जंगल में खलिहानों में अब फ़र्क़ नहीं दिखता कोई
इन्सानों के हाथों से ही अब सारे दह जाते हैं 

कहते हैं पैग़ाम अमन का ले के जाएंगे - तो फिर 
क्यों हाथों में खंज़र और तलवारें गह गह जाते हैं 

जीवन में कुछ दुःख की घड़ियां भी अक़्सर आ जाती हैं 
कोई रो कर काटें - कोई हंस हंस के सह जाते हैं 

जिन बच्चों के दिल में हम बचपन में डर भर देते हैं 
वो बच्चे फिर जीवन भर कुछ सहमे से रह जाते हैं 

कहने वाले जो मन आए बिन सोचे कह जाते हैं 
धन्य मगर हैं 'राजन' जो ख़ामोशी से सह जाते हैं 
                                " राजन सचदेव "


जज़्बात                 = भावनाएं 
जुनू ,  जुनून          = उन्माद,  नशा, लगन 
रस्मो-रिवायत में   =  रस्मो-रिवाज़ों में 
खलिहानों              = खेत खलिहान 
दह जाते हैं            = जल जाते हैं --  जला दिए जाते हैं 
गह गह जाते हैं     = उठा कर, पकड़ कर - हाथों में ले कर 

10 comments:

  1. आप जी के श्री चरणों में प्रणाम, 🙏🌹आप बहुत प्रेरणा दायक बातें बताते हैं लेकिन हम अपने जीवन में नहीं उतार पाते अगर हम इन्हें अपने जीवन में उतार लें तो बहुत सी समस्याएं सुलझ सकती हैं

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  2. Sunder bahut sunder 🙏🙏🙏

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  3. Excellent.Bahut hee sunder aur Uttam Rachana ji.🙏

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  4. V v v nice mahatma ji

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  5. Beautifully put. 🙏🙏🙏🙏

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  6. बहुत ही सुंदर गुरु जी 🙏

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  7. 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👍🙏

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  8. Beautifully said!!🙏🙏🕉🕉

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