है कोई भूला मन समझावै।
एह मन चंचल चोर पाहरु छूटा हाथ ना आवै ।।
जोड़ जोड़ धन ओड़े घोड़े वहां कोई लैन न पावै ।
कंठ कपाल आन यम घेरे - दे दे सैन बतावै ।।
खोटा दाम गाँठ लिए दौड़त बड़ी बड़ी वस्तु मनावै
बोए बबूल दाख फल चाहत सो फल कैसे पावै।।
हरि की कृपा साधु की संगत एह दोय मत बिसरावै।
कहत कबीर सुनो भई साधो बहुरि न भवजल आवै ।।
सद्गुरु कबीर जी
पाहरु = पहरेदार
Dhandvat Dhan nirankar uncle ji
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