Tuesday, April 24, 2018

आपके बच्चे वास्तव में आपके नहीं हैं - ख़लील जिब्रान

                         " बच्चे "   (ख़लील जिब्रान)

आपके बच्चे वास्तव में आपके बच्चे नहीं हैं
वह तो स्वयं जीवन की आकाँक्षा के ही बेटे बेटियाँ हैं

वह आपके द्वारा - आप के माध्यम से तो आते हैं - लेकिन आप से नहीं
और यद्यपि वे आपके साथ रहते हैं, लेकिन फिर भी वे आप के नहीं हैं

तुम उन्हें अपना प्यार दे सकते हो - लेकिन अपनी सोच नहीं -
क्योंकि उनकी सोच तो उनकी अपनी ही होती है

तुम उनके शरीरों को घर दे सकते हो, उनकी आत्माओं को नहीं
क्योंकि उनकी आत्माएँ तो आने वाले कल के घरों में रहती हैं
जहाँ तुम नहीं जा सकते - सपनों में भी नहीं

तुम उनके जैसा बनने की कोशिश तो कर सकते हो
पर उन्हें अपने जैसा नहीं बना सकते

क्योंकि ज़िंदगी कभी पीछे की तरफ नहीं जाती
न ही बीते हुए कल पर - भूतकाल में ठहर सकती है

तुम तो केवल वह कमान हो - जिससे तुम्हारे बच्चे
जीवित तीरों की तरह छूट कर निकलते हैं

तीर चलाने वाले (प्रभु ) का निशाना अनंत की राह पर होता है 
और वह अपनी शक्ति से, तुम्हें कमान की तरह झुका देता है 
ताकि उसमें से निकला हुआ तीर काफ़ी दूर तक पहुँच सके।  

स्वयं को खुशी से उस तीरन्दाज़ (ईश्वर ) की मर्ज़ी पर छोड़ दो 
क्योंकि जहां वह उड़ने वाले तीरों से प्यार करता है
वहीं झुकी हुई कमान से भी उतना ही प्यार करता है जो अपनी जगह पर ही स्थिर हैं 

(अर्थात प्रभु का प्रेम सबके लिए समान है - भविष्य में उड़ने वाले बच्चों से भी और भूतकाल में अटके हुए माँ-बाप से भी। 
इसलिए हम अपनी और अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए उन्हें स्वतंत्रता से सोचने और आगे बढ़ने दें)
                                            ~  ख़लील जिब्रान ~ 

कवि ने इस कविता में जीवन की एक कटु लेकिन गहरी सच्चाई को कितनी खूबसूरती से व्यक्त किया है। 
पढ़ने, सुनने में तो ये दृष्टिकोण बहुत सुंदर और सहज लगता है - 
लेकिन इसे जीवन में प्रैक्टिकल तौर पर विकसित कर पाना शायद इतना आसान नहीं !

सभी माता-पिता अपने बच्चों से प्यार करते हैं - और सभी बच्चे भी अपने माता-पिता से प्यार करते हैं।
संघर्ष आमतौर पर तब होता है जब एक पक्ष दूसरे की तुलना में अधिक मांग करने लगता है।
ज्यादातर माता-पिता सोचते हैं कि उनके बच्चों को हमेशा उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए 
वे चाहते हैं कि उनके एक मामूली से इशारे पर ही बच्चे जो कुछ भी कर रहे हों उसे छोड़ कर उनकी बात सुनें और उनकी सेवा करें । लेकिन, चाहे वो अपने माता-पिता से कितना ही प्यार क्यों न करते हों - और तहे-दिल से उनका सम्मान भी करते हों
बच्चे हर समय ऐसा करने में सक्षम नहीं हो सकते। 
दुर्भाग्य से, कई माता-पिता और बुजुर्ग  इसे अपने प्रति अवज्ञा और अपमान मान लेते हैं 
आम तौर पर ऐसी भावना - पश्चिमी देशों की तुलना में, उन माता-पिता - खास तौर पर माताओं में ज़्यादा होती है जिनकी पृष्ठभूमि (back-ground) भारत और पाकिस्तान जैसे एशियाई देशों से जुड़ी होती है।  
वे लगातार अपने बच्चों को याद दिलाते रहते हैं कि उन्होंने बच्चों के लिए - उन्हें इस दुनिया में लाने - उन्हें पालने पोसने और बड़ा करने के लिए कितना भारी त्याग किया है लेकिन बदले में उन्हें कुछ नहीं मिला - बच्चे उनकी बात नहीं मानते और उनकी पर्याप्त 
इज़्ज़त और सेवा नहीं करते - इत्यादि इत्यादि । 
स्वाभाविक है कि हर वक़्त इस तरह की टिप्पणियां सुन सुन कर हर किसी के कान पक जाते हैं - मन उचट जाता है 
और धीरे धीरे ऐसी बातों का उल्टा प्रभाव होने लगता है - 
अक़्सर बच्चों के मन में नकारात्मिक और यहां तक कि एक किस्म की बग़ावत की भावना भी जन्म लेने लगती है। 
परिणाम  - परिवार में मनमुटाव और संघर्ष।

आज सुबह जब मैं बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा था, तो अचानक दूसरे कमरे से एक हिंदी गीत की कुछ पंक्तियाँ सुनाई दीं :
                "ये ना सोचें मिला क्या है हमको 
                हम ये सोचें किया क्या है अर्पण "
कितना अच्छा होगा अगर हर कोई इस तरह से सोचने लगे ?
अगर दोनों पक्ष - यानी माता-पिता और बच्चे ऐसा सोचने लगें तो अवश्य ही दोनों तरफ से मतभेद और संघर्ष समाप्त हो जाएंगे। 
हिंदी में एक प्रसिद्ध दोहा है:
              "क्षमा बड़न को चहिये - छोटन को उत्पात "
जैसा कि खलील जिब्रान ने भी अपनी उपरोक्त कविता में लिखा है - 
कि माता-पिता और बुज़ुर्गों के कंधों पर ये जिम्मेदारी ज़्यादा होती है। 
अगर माता-पिता हमेशा ये दिखाने की कोशिश करें कि वे अपने बच्चों की तरक़्क़ी और उनकी बुद्धिमता से - अक़्लमंदी से कितने खुश हैं - हमेशा डांट डपट करने और हर समय बच्चों पर अपना अहसान जताने की जगह प्रेम से उनके हर छोटे बड़े प्रयास की सराहना करें - कि बच्चे माता पिता के लिए जो भी और जितना भी करते हैं वो उसके लिए खुश और उन के आभारी हैं। 
और दूसरी तरफ - 
जब बच्चे माँ-बाप के अहसान की जगह उनके प्रेम को महसूस करने लगें - जब उन्हें महसूस हो कि उनके माँ बाप उनके जीवन में - और उन के आगे बढ़ने के रास्ते में कोई रुकावट नहीं, बल्कि प्रेरणादायक और सहायक हैं - तो उन्हें अपने माँ बाप कभी भी बोझ नहीं लगेंगे। जब उन्हें लगे कि उनके हर छोटे बड़े प्रयास की सराहना होती है तो अनिवार्य रूप से उनके मन में माता-पिता के लिए प्रेम, श्रद्धा और सेवा की भावना में वृद्धि होगी। 
                                            'राजन सचदेव '

1 comment:

  1. Really heart touching and inspirational......keep blessings Dhan nirankar ji

    ReplyDelete

हज़ारों ख़ामियां मुझ में हैं - मुझको माफ़ कीजिए

हज़ारों ख़ामियां मुझ में  हैं   मुझको माफ़ कीजिए मगर हुज़ूर - अपने चश्मे को भी साफ़ कीजिए  मिलेगा क्या बहस-मुबाहिसों में रंज के सिवा बिला वजहा न ...