सर्वशक्तिमान निरंकार प्रभु को समर्पित
तुम से है ब्रह्माण्ड तुम जगत का मूल रुप हो
रुप सब तुम्हारे हैं और स्वयं तुम अरुप हो
अनादि हो अनंत हो अछेद हो अभेद हो
अचल हो अविचल हो तुम अजेय हो अनूप हो
निराकार रुप में निर्गुण हो निर्विकार हो
जगत के कण कण में तुम साकार का प्रतिरुप हो
आंख जब खुले तो तुम ही तुम नज़र आओ मुझे
बंद आँखों में बसा हरदम तुम्हारा रुप हो
तुम से ही जीवन है मेरा तुम मेरे आधार हो
साथ रहते हो हमेशा छाओं हो या धूप हो
'राजन' की है प्रार्थना जीवन के अंतिम स्वास तक
ध्यान आपका हो - सोच आपके अनुरुप हो
" राजन सचदेव "
हम सभी की यही अर्चना है 🌺
ReplyDeleteसाध संगत जी प्यार से कहना, धन निरंकार जी. दातार सबकी तोड़ निभाए जो चरणों से जुड़े हैं 🙏🙏🌹🌹
ReplyDeleteBahut hee Uttam Rachana.
ReplyDeleteAmazing Thoughts, Compiled amazingly....Thanks for sharing
ReplyDeleteThanks for these lines uncle ji, The Best
ReplyDeleteSabke hirday me sama jaye ji
🥀🥀🙏🏻🥀🥀
ReplyDeleteVery nice ji 👍🎊👌🙏🙏
ReplyDeleteBahut He Sunder Parathna Nirakar Prabhu Ke Aage.
ReplyDeleteSuperb🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteBeautiful Poem and prayer 🙏🙏
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