न : शिव शक्तिरहितो न शक्ति: शिववर्जिता।
उभयोरस्ति तादात्म्यं वह्निदाहकयोरिव ।।
शब्दार्थ :
न शिव शक्ति के बिना हैं और न शक्ति शिव के बिना
दोनों के बीच ऐसा ही तादात्म्य है जैसे अग्नि और ईंधन में ।।
भावार्थ :
न शिव शक्ति के बिना हैं और न शक्ति शिव के बिना - दोनों के बीच तादात्म्य है - एकत्व है।
ये एक दूसरे के विपरीत नहीं बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों में सामंजस्य है - सामन्वय है।
ऐसे ही जैसे अग्नि और ईंधन के बीच तादात्म्य और सामन्वय है।
ईंधन के बिना अग्नि का आस्तित्व नहीं - और लकड़ी एवं ईंधन में अग्नि का अंश प्रचुर रुप में विद्यमान रहता है जो अग्नि को प्रज्वल्लित करने में सहायक होता है - और ज़रा सा अग्नि का संग मिलते ही स्वयं भी अग्नि में ही परिवर्तित हो जाता है।
वैसे तो देखने में लकड़ी अथवा पेट्रोल में हमें अग्नि दिखाई नहीं देती लेकिन अनुरुप परिस्थिति - अर्थात अग्नि का संग मिलते ही हमें उनमें अग्नि का प्रज्वल्लित रुप स्पष्ट दिखाई देने लगता है।
इसी प्रकार ईश्वर और प्रकृति एक दूसरे के विपरीत नहीं बल्कि पूरक हैं। दोनों में तादात्म्य एवं सामन्वय है।
ईश्वर अर्थात शक्ति के बिना प्रकृति का कोई आस्तित्व नहीं। ईश्वरीय शक्ति से ही प्रकृति का उद्भव एवं संचालन होता है।
और प्रकृति के द्वारा ही हमें ईश्वर का परिचय एवं अनुभव प्राप्त होता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इस का अर्थ होगा कि एनर्जी और मैटर (Energy & Matter) अर्थात ऊर्जा एवं पदार्थ एक दूसरे के पूरक हैं - ऊर्जा पदार्थ में और पदार्थ ऊर्जा में परिवर्तित हो सकते हैं और हो जाते हैं।
यहां ऊर्जा को शिव और प्रकृति को शक्ति के रुप में देखा जा सकता है।
ऊर्जा अर्थात शिव (ईश्वर) से ही प्रकृति संचालित होती है और प्रकृति की शक्ति से ही ऊर्जा अर्थात ईश्वर का अनुभव होता है।
साधारणतया हमें प्रकृति की शक्ति का कोई एहसास नहीं होता।
लेकिन अकस्मात कोई प्राकृतिक आपदा - जैसे भयंकर तूफ़ान और बवंडर - हरिकेन (hurricane), सुनामी, बाढ़ और भूचाल इत्यादि आने पर हमें प्रकृति की असीम शक्ति प्रकट रुप से दिखाई देने लगती है और तुरंत ही हमें प्रकृति के सामने अपनी असहायता का एहसास भी होने लगता है।
सारांश यह - कि ईश्वर एवं प्रकृति एक दूसरे में परिपूर्ण हैं।
ईश्वर में ही प्रकृति है और प्रकृति में ही ईश्वर है।
सकल वनस्पति मंह बैसंतर सकल दूध में घीअ
तैसे ही हरि बसे निरंतर घट घट माधो जीअ
जैसे सभी पेड़ पौधों एवं लकड़ी में अपरोक्ष रुप में अग्नि विद्यमान रहती है
जैसे दूध में अप्रत्यक्ष रुप में घी मौजूद है
उसी तरह हर घट में - हर प्राणी एवं हर शै में हरि - अर्थात निराकार ईश्वर भी अपरोक्ष रुप में सदा विद्यमान रहता है।
" राजन सचदेव "
Bilkul sahi hai Ji
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏
ReplyDelete🙏Never knew….Bahut hee Uttam aur shikhshadayak Rachana .Shiva and Shakti……Absolutely true ji .🙏
ReplyDeleteBilkul sahi hai ji🙏🙏🙏
ReplyDeleteUniversal truth! Well explained!
ReplyDeleteBeautifully explained. It's the reality. We can realize the Absolute Truth. Thanks a lot for sharing. Keep spreading the fragrance of spirituality among masses 🌺🙏
ReplyDeleteBeautifully explained🙏
ReplyDelete