हालांकि विज्ञान और धर्म के बीच कई अंतर हैं - लेकिन दोनों में कुछ समानताएं भी हैं।
दोनों का प्रयोजन किसी विशेष लक्ष्य को प्राप्त करना एवं मानव जीवन को सुलभ, शांत और चिंतामुक्त बनाना है।
दोनों की शुरुआत पहले किसी कल्पना पर आधारित होती है और फिर इस विश्वास के साथ आगे बढ़ती है कि उस कल्पना को साकार करना सम्भव हो सकता है।
प्रत्येक वैज्ञानिक खोज और आविष्कार शुरु में केवल चंद लोगों की कल्पना थी - जिनके मन में यह विश्वास था कि उस कल्पना को पूरा करना संभव हो सकता है।
उदाहरण के लिए, जब लोगों ने पक्षियों को उड़ते हुए देखा तो उनके मन में भी आकाश में उड़ने की इच्छा पैदा हुई। शताब्दियों तक उन्होंने इसकी कल्पना की और आकाश में ऊँचा उड़ने के सपने देखे। कुछ लोगों ने इस सपने को पूरा करने के लिए कई अलग-अलग तरीके आज़माए। बहुत से लोग उन पर हँसे - उन का मज़ाक भी किया गया - लेकिन वह विश्वास के साथ निरंतर प्रयास करते रहे और अंततः प्रकृति के नियमों का अध्ययन और विश्लेषण करते हुए उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल कर ही लिया। जैसे ही वे जमीन से ऊपर उठने में सक्षम हुए - चाहे कुछ ही मिनटों के लिए और केवल थोड़ी सी दूरी के लिए ही अपने विमान को हवा में उड़ाने के क़ाबिल हो सके - उनकी कल्पना और विश्वास ज्ञान में बदल गए।
लेकिन वे वहाँ रुके नहीं - वे अपने ज्ञान को बढ़ाने और इससे भी ऊँचे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर अध्ययन और प्रयास करते रहे।
इसी प्रकार धर्म भी एक कल्पना और विश्वास के साथ प्रारम्भ होता है। लेकिन सनातन धर्म एवं वेदांत के संस्थापकों और गौतम बुद्ध इत्यादि कुछएक को छोड़कर - जो साधकों को जांच करने और सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करते रहे - अधिकांश धर्म बिना किसी तर्क या प्रमाण के उनके सिद्धांतों पर विश्वास करने पर जोर देते हैं - और उन्हें पूर्ण समर्पण के साथ शब्दशः पालन करने का निर्देश देते हैं । वे न तो सवाल करने की इजाज़त देते हैं और न ही किसी तर्क का जवाब देना चाहते हैं।
यहीं से विज्ञान और धर्म एक दूसरे से अलग हो जाते हैं।
इसके अतिरिक्त, विज्ञान और आगे सोचने और समझने की वकालत करता है। यह हमेशा नई खोज - नए ज्ञान की प्राप्ति अथवा पुराने सिद्धांतों में सुधार के लिए भी तत्पर रहता है - नए सिद्धांतों की जानकारी मिलने पर अपने पुराने सिद्धांतों और विचारों को बदलने में भी संकोच नहीं करता। जबकि प्रचलित धर्मों के नेता ये चाहते हैं कि आप सोचना बंद कर दें और आँख मूँद कर केवल अनुसरण करते रहें।
अंततः, वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग पूरी दुनिया को लाभ पहुंचाने के लिए किया जाता है - पूरी मानवता के लिए - कुछ विशेष व्यक्तियों या किसी एक ही पृष्ठभूमि के लोगों के समूह के लिए नहीं।
जबकि तथाकथित प्रचलित धर्मों के आगू केवल अपने अनुयायिओं की ही तरक्की की पैरवी करते हुए दिखाई देते हैं।
जहां विज्ञान भौतिक जीवन की उन्नति के लिए नई खोज और नए आविष्कार करने का प्रयत्न करता रहता है - वहीं धर्म या आध्यात्मिकता का संबंध आंतरिक, अर्थात मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र से है।
ज़रा सोचिए कि यदि हम धर्म और विज्ञान दोनों के गुणों को अपने विचारों में समन्वित कर पाएं - दोनों की अच्छी बातों को अपना सकें तो कितना अच्छा होगा। दोनों के संयोजन से जीवन में एक नई प्रतिभा का उदय होगा - एक नया विश्वास जागेगा जो कि अंध-विश्वास पर नहीं बल्कि ज्ञान पर आधारित होगा जो जीवन में एक नई स्फूर्ति पैदा करेगा।
पहले किसी सिद्धांत में विश्वास के साथ अपनी यात्रा शुरु करें - फिर निजी अनुभव से उसकी जांच और तर्क के साथ इसकी पुष्टि करें और जब तक पूरी तरह संतुष्टि न हो - जब तक कि विश्वास ज्ञान में न बदल जाए, तब तक खोज जारी रखें।
किसी प्रश्न अथवा शंका को मन में दबा देने से मन कुंठित रहता है।
कई बार मैंने बाबा अवतार सिंह जी निरंकारी को यह कहते हुए सुना कि जो ज्ञान मैंने दिया है उस पर सिर्फ इसलिए विश्वास मत करो क्योंकि मैं तुम्हें दे रहा हूं। कल अगर मैं भी तुमसे कहूं कि यह ठीक नहीं है, तो मेरी बात भी मत मानना। और फिर इसके साथ ही कहते थे कि 'गुरुमुख होए सो चेतन' - अर्थात एक गुरुमुख - एक वास्तविक साधक या भक्त को हमेशा सचेत रहना चाहिए और केवल सही बातों पर विश्वास करके अपने ज्ञान का उपयोग करना चाहिए।
जब तक ज्ञान स्वयं का अनुभव नहीं बनता - यह केवल विश्वास है - ज्ञान नहीं।
' राजन सचदेव '
दोनों का प्रयोजन किसी विशेष लक्ष्य को प्राप्त करना एवं मानव जीवन को सुलभ, शांत और चिंतामुक्त बनाना है।
दोनों की शुरुआत पहले किसी कल्पना पर आधारित होती है और फिर इस विश्वास के साथ आगे बढ़ती है कि उस कल्पना को साकार करना सम्भव हो सकता है।
प्रत्येक वैज्ञानिक खोज और आविष्कार शुरु में केवल चंद लोगों की कल्पना थी - जिनके मन में यह विश्वास था कि उस कल्पना को पूरा करना संभव हो सकता है।
उदाहरण के लिए, जब लोगों ने पक्षियों को उड़ते हुए देखा तो उनके मन में भी आकाश में उड़ने की इच्छा पैदा हुई। शताब्दियों तक उन्होंने इसकी कल्पना की और आकाश में ऊँचा उड़ने के सपने देखे। कुछ लोगों ने इस सपने को पूरा करने के लिए कई अलग-अलग तरीके आज़माए। बहुत से लोग उन पर हँसे - उन का मज़ाक भी किया गया - लेकिन वह विश्वास के साथ निरंतर प्रयास करते रहे और अंततः प्रकृति के नियमों का अध्ययन और विश्लेषण करते हुए उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल कर ही लिया। जैसे ही वे जमीन से ऊपर उठने में सक्षम हुए - चाहे कुछ ही मिनटों के लिए और केवल थोड़ी सी दूरी के लिए ही अपने विमान को हवा में उड़ाने के क़ाबिल हो सके - उनकी कल्पना और विश्वास ज्ञान में बदल गए।
लेकिन वे वहाँ रुके नहीं - वे अपने ज्ञान को बढ़ाने और इससे भी ऊँचे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर अध्ययन और प्रयास करते रहे।
इसी प्रकार धर्म भी एक कल्पना और विश्वास के साथ प्रारम्भ होता है। लेकिन सनातन धर्म एवं वेदांत के संस्थापकों और गौतम बुद्ध इत्यादि कुछएक को छोड़कर - जो साधकों को जांच करने और सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करते रहे - अधिकांश धर्म बिना किसी तर्क या प्रमाण के उनके सिद्धांतों पर विश्वास करने पर जोर देते हैं - और उन्हें पूर्ण समर्पण के साथ शब्दशः पालन करने का निर्देश देते हैं । वे न तो सवाल करने की इजाज़त देते हैं और न ही किसी तर्क का जवाब देना चाहते हैं।
यहीं से विज्ञान और धर्म एक दूसरे से अलग हो जाते हैं।
इसके अतिरिक्त, विज्ञान और आगे सोचने और समझने की वकालत करता है। यह हमेशा नई खोज - नए ज्ञान की प्राप्ति अथवा पुराने सिद्धांतों में सुधार के लिए भी तत्पर रहता है - नए सिद्धांतों की जानकारी मिलने पर अपने पुराने सिद्धांतों और विचारों को बदलने में भी संकोच नहीं करता। जबकि प्रचलित धर्मों के नेता ये चाहते हैं कि आप सोचना बंद कर दें और आँख मूँद कर केवल अनुसरण करते रहें।
अंततः, वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग पूरी दुनिया को लाभ पहुंचाने के लिए किया जाता है - पूरी मानवता के लिए - कुछ विशेष व्यक्तियों या किसी एक ही पृष्ठभूमि के लोगों के समूह के लिए नहीं।
जबकि तथाकथित प्रचलित धर्मों के आगू केवल अपने अनुयायिओं की ही तरक्की की पैरवी करते हुए दिखाई देते हैं।
जहां विज्ञान भौतिक जीवन की उन्नति के लिए नई खोज और नए आविष्कार करने का प्रयत्न करता रहता है - वहीं धर्म या आध्यात्मिकता का संबंध आंतरिक, अर्थात मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र से है।
ज़रा सोचिए कि यदि हम धर्म और विज्ञान दोनों के गुणों को अपने विचारों में समन्वित कर पाएं - दोनों की अच्छी बातों को अपना सकें तो कितना अच्छा होगा। दोनों के संयोजन से जीवन में एक नई प्रतिभा का उदय होगा - एक नया विश्वास जागेगा जो कि अंध-विश्वास पर नहीं बल्कि ज्ञान पर आधारित होगा जो जीवन में एक नई स्फूर्ति पैदा करेगा।
पहले किसी सिद्धांत में विश्वास के साथ अपनी यात्रा शुरु करें - फिर निजी अनुभव से उसकी जांच और तर्क के साथ इसकी पुष्टि करें और जब तक पूरी तरह संतुष्टि न हो - जब तक कि विश्वास ज्ञान में न बदल जाए, तब तक खोज जारी रखें।
किसी प्रश्न अथवा शंका को मन में दबा देने से मन कुंठित रहता है।
कई बार मैंने बाबा अवतार सिंह जी निरंकारी को यह कहते हुए सुना कि जो ज्ञान मैंने दिया है उस पर सिर्फ इसलिए विश्वास मत करो क्योंकि मैं तुम्हें दे रहा हूं। कल अगर मैं भी तुमसे कहूं कि यह ठीक नहीं है, तो मेरी बात भी मत मानना। और फिर इसके साथ ही कहते थे कि 'गुरुमुख होए सो चेतन' - अर्थात एक गुरुमुख - एक वास्तविक साधक या भक्त को हमेशा सचेत रहना चाहिए और केवल सही बातों पर विश्वास करके अपने ज्ञान का उपयोग करना चाहिए।
जब तक ज्ञान स्वयं का अनुभव नहीं बनता - यह केवल विश्वास है - ज्ञान नहीं।
' राजन सचदेव '
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