Friday, May 26, 2017

सच घटे या बढ़े - तो सच न रहे Such Ghatay ya Badhay

ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं

सच घटे या बढ़े - तो सच न रहे 
झूठ की कोई इन्तहा ही नहीं 

चाहे  सोने के फ्रेम में जड़ दो 
आईना झूठ बोलता ही नहीं 

इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मैं 
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं 

जिसके कारण फ़साद होते हैं 
उसका कोई अता -पता ही नहीं 

ज़िंदगी - मौत तेरी मंज़िल है 
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं 

अपनी रचनाओं में वो ज़िंदा है 
"नूर " संसार से गया ही नहीं 

                       (कृष्ण बिहारी ' नूर ')

Zindagi se badi sazaa hi nahin
Aur kya jurm hai pataa hi nahin 

Such ghatay ya badhay-to such na rahay 
Jhooth ki koi intahaa hi nahin 

Chaahay sonay ke frame me jad do 
Aaina jhooth boltaa hi nahin

Itane hisson me bant gayaa hoon main 
Mere hissay me kuchh bachaa hi nahin 

Jis kay kaaran fassad hotay hain 
Uska koi ataa pataa hi nahin 

Zindagi -- Maut teri manzil hai 
Doosra koi raastaa hi nahin 

Apani rachnaaon me vo zindaa hai 
"Noor" sansaar se gayaa hi nahin 
      
               By: Krishn Bihaari 'Noor'


Intahaa ..... End or Limit
Fasaad ..... Fightings , uprisings, riots,
Rachnaaon me ...... in the writings and poetry



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