सूरज निकले तो अँधेरा रह नहीं सकता
मैं रात को हरगिज़ सवेरा कह नहीं सकता
जानता हूँ कुछ भी तो मेरा नहीं लेकिन
खो जाता है कुछ तो, क्यों मैं सह नहीं सकता
क्यों तरसता हूँ किसी के साथ के लिए
क्यों मैं अपने आप में खुश रह नहीं सकता
प्रेम हो जाता है - प्रेम किया नहीं जाता
क्यों हो जाता है ये कोई कह नहीं सकता
रोने से जी हल्का तो हो जाता है मगर
दिल का दर्द आँसुओं में बह नहीं सकता
गहरी होनी चाहिए ईमान की बुनियाद
मजबूत किलाआँधियों में ढह नहीं सकता
नदियां जब समंदर में मिल जाएँ तो 'राजन'
अपना कोई वजूद उनका रह नहीं सकता
'राजन सचदेव'
मैं रात को हरगिज़ सवेरा कह नहीं सकता
जानता हूँ कुछ भी तो मेरा नहीं लेकिन
खो जाता है कुछ तो, क्यों मैं सह नहीं सकता
क्यों तरसता हूँ किसी के साथ के लिए
क्यों मैं अपने आप में खुश रह नहीं सकता
प्रेम हो जाता है - प्रेम किया नहीं जाता
क्यों हो जाता है ये कोई कह नहीं सकता
रोने से जी हल्का तो हो जाता है मगर
दिल का दर्द आँसुओं में बह नहीं सकता
गहरी होनी चाहिए ईमान की बुनियाद
मजबूत किलाआँधियों में ढह नहीं सकता
नदियां जब समंदर में मिल जाएँ तो 'राजन'
अपना कोई वजूद उनका रह नहीं सकता
'राजन सचदेव'
वाह राजन ! बहुत ख़ूब ! 👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼
ReplyDeleteVery nice and deep poem....
ReplyDeleteBeautiful. Very Touching.
ReplyDeleteSudha