"He (the writer) cannot evoke in the reader the mood in
which the thought was born and induce in him the vision he beholds."
" Dr. S. Radhakrishnan " in the commentary
of "Bhagavad Gita"
हज़ारों ख़ामियां मुझ में हैं मुझको माफ़ कीजिए मगर हुज़ूर - अपने चश्मे को भी साफ़ कीजिए मिलेगा क्या बहस-मुबाहिसों में रंज के सिवा बिला वजहा न ...
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