Friday, September 4, 2015

ये ​ज़ुबां किसी ने खरीद ली

ज़ुबां किसी ने खरीद ली, क़लम भी अब ग़ुलाम है 
पहरे लगे हैं सोच पर -  दिल पर पड़ी लगाम है 

न अक़्ल ही आज़ाद है, न होश का कोई काम है 
पड़ गए हैं रुह पे परदे - ज़िंदगी गुमनाम है 

छुप गयीं हक़ीक़तें - रस्मों का चर्चा आम है

इबादतें भी आजकल रिवायतों का नाम है

सच का सूरज छुप रहा है ढल रही अब शाम है 
ख़ामोशियाँ ही बेहतर हैं, ये वक़्त का पैग़ाम है ​

हक़ूमतों का ​दौर ​है, दौलत का एहतिराम है
​वो - कि जो आज़ाद है, 'राजन' उसे सलाम है                             
           
                            'राजन सचदेव' 

हक़ीक़तें -- Realities, Truth
रस्मों का -- Traditions , Rituals 
इबादतें --  Devotion
रिवायतों का --  Rituals
एहतिराम -- Respect, Value, Importance


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Death is inevitable

In the Bhagavad Gita, Lord Krishna says:                Jaatasya hi Dhruvo Mrityuh   "For one who is born, death is certain."     ...