Friday, May 30, 2025

वार्तालाप के लिए तीन द्वार या फ़िल्टर

एक पुरानी कहावत है कि हम जो भी शब्द बोलते हैं, उसे पहले तीन दरवाज़ों या फिल्टर से गुजरना चाहिए:

1. क्या यह बात सच है?
2. क्या यह बात बतानी ज़रुरी है?
3. क्या यह बात अच्छी और लाभप्रद है?

आम तौर पर यह कहा जाता है कि यह बात सुकरात अथवा महात्मा बुद्ध द्वारा कही गई थी और हाल ही में कुछ लोग इसका श्रेय 13वीं सदी के सूफी कवि रुमी को भी देने लगे हैं। हालाँकि हज़रत रुमी के मूल फ़ारसी लेखन में इस का कोई ज़िक्र नहीं है। 

वैसे, ये महत्वपूर्ण नहीं है कि इसे सबसे पहले किसने कहा।
"किसने कहा" की बजाए "क्या कहा गया है" को देखें तो यह एक बहुत ही सुंदर और अनुकरणीय बात है।

मूल कहानी कुछ इस प्रकार है:
किसी ने सुकरात (या भगवान बुद्ध) से कहा:
"मैं आपको हमारे एक मित्र के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ।"
सुकरात (या भगवान बुद्ध) ने कहा:
"ठहरो। इससे पहले कि तुम मुझे कुछ बताओ, मेरे तीन प्रश्नों का उत्तर दो।
पहला प्रश्न - क्या यह सच है?"
 उस व्यक्ति ने कहा - "मुझे ठीक से पता नहीं "
"क्या मेरे लिए यह जानना आवश्यक है?"
"शायद नहीं।" 
"क्या यह बात अच्छी और सुखद है, या किसी भी तरह से मेरे लिए लाभप्रद है?"
"शायद नहीं।"
"तो फिर ये बात मुझे सुनाने की कोई ज़रुरत नहीं है," सुकरात ने कहा।
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कई विद्वान इस कहानी और इस शिक्षा स्रोत्र बौद्ध दर्शन से मानते हैं, जहाँ विचारशील वार्तालाप नैतिक जीवन में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
लेकिन यह कहानी चाहे भगवान बुद्ध की हो या सुकरात की, इसमें एक सुंदर और अनुकरण करने योग्य संदेश मिलता है।
आज की दुनिया में - जो शोर शराबे, नकली आख्यानों और झूठे प्रचार से भरी है - ये तीन छोटे छोटे सवाल हमें अधिक ईमानदारी, और उद्देश्यपूर्णता के साथ निष्पक्षता से बोलने और सुनने में मदद कर सकते हैं।
और कालांतर में हम यह भी समझ पाएंगे कि किस समय मौन रहना बोलने से अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है।
                                    " राजन सचदेव "

1 comment:

  1. Thanks for sharing Respected Uncle ji 🙏

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Jab tak saans chalti hai - As long as the breath continues

      Uthaana khud hee padta hai thakaa toota badan 'Fakhri'       Ki jab tak saans chalti hai koi kandhaa nahin detaa              ...