आज सुबह कुछ पुरानी फाइलों को देखते समय संत तुलसी दास जी का यह दोहा हाथ में आ गया l
"लोहा पारस परस कै कंचन भई तलवार
तुलसी तीनों न मिटे - धार मार आकार "
राम चरित मानस के रचयिता संत तुलसी दास इस दोहे के माध्यम से अध्यात्मिक जीवन के एक कटु सत्य की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं l
वह कहते हैं कि जैसे एक लोहे की तलवार पारस पत्थर का स्पर्श करके सोना तो बन जाती है लेकिन उसका आकार और गुण वैसे का वैसा ही रहता है l
उसकी तीक्ष्णता और कार्यप्रणाली पहले जैसी ही रहती है।
उसमें चमक आ जाती है और उसकी कीमत भी कई गुना बढ़ जाती है। वह दर्शनीय और प्रशंसनीय तो बन जाती है लेकिन न तो उसका आकार बदलता है - और न ही उसकी पैनी तीखी धार - और मार काट करने का गुण ही बदलता है l भले ही वो तलवार अब सोने में बदल चुकी है फिर भी यह घायल करने में सक्षम है और अगर कोई उसे दबाने अथवा उसके रास्ते में आने की कोशिश करे तो उसे काट भी सकती है।
इसी तरह सतगुरु के सानिध्य और ज्ञान के सम्पर्क में आने से धन-धान्य तथा यश और मान तो प्राप्त हो जाते हैं लेकिन इन्सान का स्वभाव नहीं बदलता l
जिनके स्वभाव में पहले से ही विनम्रता हो वो विनम्र ही बने रहते हैं l
और जिनके ह्रदय में स्वभाविक रुप से अभिमान है - जिनमें स्वयं को दर्शाने और लीडर शिप की भावना और इच्छा होती है, वो अध्यात्मिक क्षेत्रों में भी स्वयं को दर्शाने - आगे रहने और दूसरों पर नियंत्रण रखने का यत्न करते रहते हैं।
तो क्या इसका अर्थ ये हुआ कि इन्सान का स्वभाव कभी बदल नहीं सकता ?
तुलसी दास इसका उपाय भी समझाते हैं l
"ज्ञान हथौड़ा जे मिले, सतगुरु मिले सुनार
तुलसी तीनों मिट गए धार मार आकार "
तलवार की धार और आकार को हथौड़े की चोट से बदला जा सकता है l
उसे स्वर्ण कलश, स्वर्ण आभूषण या स्वर्ण मूर्ति में रुपान्तरित करके उसके मार काट करने के गुण को भी बदला जा सकता है l
इसी तरह संतों के वचनों को बार बार सुनना और ज्ञान को बार बार अपने ह्रदय में दोहराना एक प्रकार से हथौड़े का काम करता है।
लेकिन गुरु ज्ञान और गुरु वचनों की चोट कानों पर नहीं, ह्रदय पर पड़ेगी तभी स्वभाव बदलेगा। … अन्यथा नहीं ।
" राजन सचदेव "
Today’s post answers many of the questions I have been having all this time. Thanks.
ReplyDeleteThis writing, made me think about many of my own shadows.
ReplyDeleteYour writings always help awaken us ...works like little hammer of the Goldsmith, which moulds you little at a time. Thank you
The comment was by Vishnu Panjwani
ReplyDeleteThank you Vishnu ji
DeleteThank you ji. 🙏🏻🙏🏻💐🌺
ReplyDeleteI was thinking about it last week. I was curious to know answer and here is answer.
ReplyDeleteThank you uncle ji 🙏🏻 ❤️
/Satyavan
Tera swabhav mera swabhav ho jaata hai jab teri baate meri zindagi ban jaata hai
ReplyDeleteSo nicely explained ....it's definitely true .... Swaym ko badi imanadari se nirikshan karke nirantarata k sath aage badhna hi dhey ho
ReplyDeleteBahut uttam vichar🌹🌹🙏🙏
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