Friday, September 16, 2022

मन की अमीरी

मेरे घर के सामने गली में एक मोची  बैठता है जो आने जाने वालों के जूते मुरम्मत करता और पालिश करता है ।
मैं अक़्सर देखता हूं कि रोज़ एक कुत्ता उसके पास आकर बैठ जाता है, और वह उसे कभी बिस्कुट खिलाता है और कभी दूध पिलाता है।

फिर वो आदमी अपने काम में व्यस्त हो जाता है और कुत्ता वहीं बैठ कर उसे काम करते हुए देखता रहता है - जैसे कि उसे साथ दे रहा हो।
लगता है कि उनके बीच एक अजीब सा संबंध है - ऐसा लगता है जैसे वो  बिना एक शब्द भी बोले आपस में बातचीत कर रहे हैं।

वह हर रोज़ पक्षियों के लिए भोजन भी लाता है, जिसे वह फुटपाथ पर थोड़ी थोड़ी दूरी पर रख देता है। 

कई बार लोग रुक कर उससे दिशा-निर्देश मांगते हैं - सही रास्ते की पूछताछ करते हैं।  भले ही  वो लोग उस से कोई काम न भी करवाएं तो भी वह हमेशा मुस्कुराते हुए उनका मार्गदर्शन करता है। दिखाई देती है 

यदि वह किसी बेघर व्यक्ति को पास से गुजरते हुए देखता है, तो वह उन्हें पानी और भोजन प्रदान करता है - वो भोजन जो वह अपने लिए लाता है। 
वह उनसे बातचीत भी करता है। उस ग़रीब बेघर व्यक्ति को जो ख़ुशी और शान्ति मिलती है, वो उसके चेहरे से साफ़ दिखाई देती है। 

आज सुबह, मैंने उससे बात करने का फैसला किया और उसके पास चला गया। 
उस ने मुस्कुराते हुए मेरा अभिवादन किया।
उस ने कहा कि उस का नाम दया राम है (उसका नाम भी उसके दयालु और उदार स्वभाव के लिए काफी उपयुक्त लगता है )
उसने मुझसे पूछा " चाय पीओगे ?
मैं चौंक गया और आश्चर्य से सोचने लगा।
यहाँ एक आदमी है - जो  इतना संघर्ष कर के भी दिन भर में मुश्किल से 100 या 150  रुपये कमाता होगा - और उसमें से भी वह 15 - 20 रुपये कुत्ते और पक्षियों के लिए भोजन पर खर्च कर देता  होगा।
और अब, दो कप चाय के लिए भी 20 रुपये खर्च हो जाएंगे ।
लेकिन फिर भी मैंने कहा, ठीक है - चलो चाय पीते हैं।"

वो धीरे से मुस्कुराया - उसकी मुस्कराहट में उसके अन्तःकरण की अमीरी साफ़ झलक रही थी। 
बात जारी रखते हुए मैंने कहा कि मैं कुछ दिनों से उसे और उसकी कार्य-प्रणाली को  देख रहा हूं - और मैं उससे बहुत ही प्रभावित हूं।
फिर मैंने उससे उस कुत्ते के बारे में पूछा।
उस ने कहा, "हाँ ! वह भी हम में से ही एक है - हमारे जैसी ही ईश्वर की रचना है "।
 (मुझे लगा कि अद्वैत विचारधारा का इस से बढ़ कर सुंदर एवं प्रैक्टिकल उदाहरण क्या होगा !)

जब मैंने उस की उदारता के लिए उस की प्रशंसा की, तो उस ने कहा: 
"मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूं ... यह तो स्वयं ईश्वर ही है जो मेरे माध्यम से ऐसा कर रहा है। यह कहना गलत होगा कि 'मैं' कुछ कर रहा हूं!"

मैंने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया - और उनसे कुछ पैसे भेंट रुप में स्वीकार करने का अनुरोध करते हुए कहा, "यह पैसे आपको मैं नहीं दे रहा हूँ । यह वही ईश्वर ही है जो इसे मेरे माध्यम से आपको भेज रहा है।"
उसने हँसते हुए मेरी भेंट स्वीकार की। 

जैसे ही मैं चलने के लिए उठा तो  उसने कहा:
"मांगो उसी से - बांटो ख़ुशी से - पर कहो न किसी से "
( अर्थात केवल ईश्वर से ही मांगो, लेकिन फिर - उसे जमा मत करो - इसे दूसरों के साथ खुशी और कृतज्ञता के साथ साझा भी करो । लेकिन  चुपचाप - बिना शोर किए - बिना प्रचारित किए )

वैसे तो वह मोची जूतों की मरम्मत करके उन्हें सुधारता है - उन्हें पॉलिश करके चमकाता है - लेकिन आज उसने मेरे मन और आत्मा का सुधार करके उसे चमका  दिया। 

2 comments:

Khamosh rehnay ka hunar - Art of being Silent

Na jaanay dil mein kyon sabar-o-shukar ab tak nahin aaya Mujhay khamosh rehnay ka hunar ab tak nahin aaya Sunay bhee hain, sunaaye bhee hain...