हर पल मगर मैं सोचता कुछ और हूँ
तुम से ही तो रौशन हैं आँखें मेरी
आँखों से पर देखता कुछ और हूँ
तुम ने दी थी सच -गोई के वास्ते
पर ज़ुबां से बोलता कुछ और हूँ
सृष्टि के कण कण में तेरा वास है
फिर भी तुझ को देख नहीं पाता हूँ मैं
हर नाद में छुपा अनाहत नाद है
लेकिन उसको सुन नहीं पाता हूँ मैं
तू छुपा है मेरे ही अंदर मगर
तुझको बाहर ढूंडता रहता हूँ मैं
किस तरह बरसेगी इनायत तेरी
लोगों से ये पूछता रहता हूँ मैं
सत्य का सूरज उजागर है मगर
फिर भी अँधेरे का ख़ौफ़ रहता है
सामने ही है मेरी मंज़िल मगर
फिर भी भटकने का ख़ौफ़ रहता है
ज्ञान का दीपक उठा के हाथ में
रौशनी लोगों से मांगते हैं हम
मालूम है ये दुनिया फ़ानी है 'राजन
फिर भी सुख दुनिया के मांगते हैं हम
' राजन सचदेव '
उदगम = स्तोत्र Source
सच -गोई = सच बोलने के लिए For Speaking Truth
अनाहत नाद = अनहद नाद
Bhut sunder vivran b saty samarpan b
ReplyDeleteVery beautiful Poem explain our reality. Dhannirankarji
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDelete🙏🙏
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