Monday, January 4, 2021

कोई फूल खिलने से पहले न मुरझाए

यदि सुबह सूरज के निकलते ही बादल उसे ढंक लें और उसका प्रकाश न फैलने दें -
अगर बगीचे मेंं कहीं कच्ची अधखिली कलियाँ टूट जाएं -
और फूल खिलने से पहले ही मुरझा जाएं
तो स्वभाविक है कि मन में उदासी छा जाती है। 
मन में एक टीस सी उठती है -
एक प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों?

जब बच्चों के सामने - उन के हाथों में माता पिता एवं बुज़ुर्ग लोग संसार से जाते हैं -
तो दुःख तो तब भी होता है लेकिन इसे संसार का - प्रकृति का नियम मान कर स्वीकार कर लिया जाता है।
लेकिन जब माता पिता के हाथों - उनके सामने उनकी संतान इस तरह से चली जाए तो उस दुःख को ब्यान करना किसी के बस की बात नहीं।  
संत स्वभाव के लोग इसे प्रभु इच्छा मान कर स्वीकार तो कर लेते हैं - लेकिन फिर भी उनके जीवन में एक अभाव - एक शून्य सा बना ही रहता है।
स्वभाविक है कि ऐसे समय में बड़े बड़े संत महात्मा एवं गुरुओं को भी दुःख में भावुक होते देखा और सुना गया है। 

सहज ही मन में ये प्रार्थना उठती है कि निरंकार प्रभु किसी को भी ऐसा समय न दिखाए। 
कहीं कोई कच्ची कलियाँ न टूटें - 
कोई फूल खिलने से पहले ही न मुरझाएं। 
कोई चिराग़ जलने से पहले ही न बुझ जाएं। 

क्योंकि -----------
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चला जाए जिगर का लाल ये सदमा कम नहीं होता 
बिछड़ जाए 
कोई अपना तो किस को ग़म नहीं होता 

बहुत हैं चारागर दुनिया में हर इक मर्ज़ के लेकिन 
जिगर के ज़ख्म का यारो  कोई मरहम नहीं होता 

बदलते रहते हैं मौसम बहारों के - ख़िज़ाओं के 
पर आँखों के बरसने का कोई मौसम नहीं होता
                                        
दबे लफ़्ज़ों में सच की हामी तो भरते हैं सब देखो 
मगर महफ़िल में कहने का किसी में दम नहीं होता 

सभी रिश्ते  - सभी नाते हैं जब तक सांस चलती है  
फिर उसके बाद तो 'राजन कोई हमदम नहीं होता  
                                            ' राजन सचदेव ' 

चारागर    -     इलाज़ करने वाले - Doctors 

6 comments:

Difference between Abhiman and Svaabhiman (Self-respect and Ego)

Q: Please elaborate more on how to differentiate between Abhiman and Svaabhiman - Self-respect and Ego               ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~...