तत् कर्म यत् न बन्धाय - सा विद्या या विमुक्तये ।
आयासाय अपरं कर्म - विद्या अन्या शिल्पनैपुणम् ॥
~विष्णुपुराण~
कर्म वह है जो बंधन में न डाले - विद्या वह है जो मुक्त कर दे।
अन्य कर्म केवल श्रम मात्र हैं - और अन्य विद्याएँ केवल यांत्रिक निपुणता हैं
अर्थात जिस कर्म से मनुष्य बन्धन में नही बन्धता वही सच्चा कर्म है ।
जो मुक्ति का कारण बनती है वही सच्ची विद्या है ।
शेष कर्म तो बंधन का ही कारण बन जाते हैं जिनके करने से प्राय चिन्ता और कष्ट ही प्राप्त होते हैं |
आयासाय अपरं कर्म - विद्या अन्या शिल्पनैपुणम् ॥
~विष्णुपुराण~
कर्म वह है जो बंधन में न डाले - विद्या वह है जो मुक्त कर दे।
अन्य कर्म केवल श्रम मात्र हैं - और अन्य विद्याएँ केवल यांत्रिक निपुणता हैं
अर्थात जिस कर्म से मनुष्य बन्धन में नही बन्धता वही सच्चा कर्म है ।
जो मुक्ति का कारण बनती है वही सच्ची विद्या है ।
शेष कर्म तो बंधन का ही कारण बन जाते हैं जिनके करने से प्राय चिन्ता और कष्ट ही प्राप्त होते हैं |
Very inspiring
ReplyDeleteसा विद्या या विमुक्तये इस सुुभाषित के सन्दर्भ और अर्थ को सार्वजनिक करने हेतु धन्यवाद। जन कल्याण के लिए आपकीयआपकी प्रवृत्ति प्रशंसनीय है।
ReplyDeleteधन्यवाद
DeletePrakran,adhyay air shook ka Kramer bhi bataye
ReplyDeleteYour blog is very inspiring. Please also write about your life and what you read in your free time? We need people like you. Thanks Guruji
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर राधे श्याम
ReplyDeleteज्ञानवर्धन के लिए साधुवाद।
ReplyDeleteविद्या का महत्व देने वाला श्लोक है।
ReplyDeleteहृदय से आभार
ReplyDeleteउत्तमं सुभाषितम्
ReplyDeleteबहु शोभनं
ReplyDeleteशोभनं
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