रेलवे स्टेशन की बैंच पर बैठे हुए एक बुज़ुर्ग को देख कर एक नौजवान दौड़ कर उनके पास आया और उनके पाँव छू कर बोला :
"नमस्कार गुरु जी ! मुझे पहचाना?"
"कौन?"
"सर, मैं तीस साल पहले आपका स्टूडेंट था - सातवीं कक्षा में "
"ओह! अच्छा। आजकल ठीक से दिखता नही बेटा और फिर इतने साल हो गये इसलिए नही पहचान पाया।"
उन्होंने प्यार से उसे बिठाया और उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा:
"क्या करते हो आजकल?"
"सर, मैं भी आपकी ही तरह टीचर बन गया हूँ।"
"वाह! यह तो अच्छी बात है लेकिन टीचर की तनख्वाह तो बहुत कम होती है फिर तुमने टीचर बनने की बात कैसे सोची ?"
"सर। आपकी प्रेरणा से। बचपन में मेरे मन पर आपका इतना प्रभाव पड़ा था कि मैंने उसी समय ही सोच लिया था कि मैं भी आगे चल कर आपकी तरह बनने की कोशिश करूंगा।"
"मेरी प्रेरणा से कैसे? मैं तो सारी उम्र एक साधारण प्राइमरी स्कूल में टीचर रहा , कुछ भी ख़ास नहीं किया जो किसी के मन पर प्रभाव छोड़ सके। तुमने ऐसा क्या देखा जो मेरा अनुसरण करने की सोची ?'
"सर ! जब मैं सातवीं कक्षा में था तब एक घटना घटी थी - और आपने मुझे बचाया था। मैंने तभी शिक्षक बनने का निर्णय ले लिया था।
"अच्छा! क्या हुआ था ?"
"सर, हमारी क्लास में एक बहुत अमीर लड़का पढ़ता था। एक दिन वह बहुत महंगी घड़ी पहनकर आया और बड़ी शान से सबको दिखाने लगा। सब बच्चे उस घड़ी को ललचाई नज़रों से देख रहे थे। मेरा मन भी उस घड़ी पर आ गया और खेल के पीरियड में जब उसने वह घड़ी अपने बैग में रखी तो मैंने मौका देखकर वह घड़ी चुरा ली।
उस लड़के ने आपके पास घड़ी चोरी होने की शिकायत की।
आपने कहा कि जिसने भी वह घड़ी चुराई है उसे वापस कर दो। मैं उसे सजा नही दूँगा। लेकिन डर के मारे मेरी हिम्मत ही न हुई घड़ी वापस करने की। फिर आपने कमरे का दरवाजा बंद किया और हम सबको एक लाइन में खड़े होकर ऑंखें बंद करने के लिए कहा और कहा कि आप सबकी जेबें देखेंगे और जब तक घड़ी मिल नही जाती तब तक कोई भी अपनी आँखें नही खोलेगा वरना उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा।
हम सब आँखें बन्द कर खड़े हो गए। आप एक-एक कर सबकी जेब देख रहे थे। जब आप मेरे पास आये तो मेरी धड़कन तेज होने लगी। मेरी चोरी पकड़ी जानी थी। अब जिंदगी भर के लिए मेरे ऊपर चोर का ठप्पा लगने वाला था। मैं ग्लानि से भर उठा था। लेकिन मेरी जेब में घड़ी मिलने के बाद भी आप लाइन के अंत तक सबकी ज़ेबें देखते रहे। और घड़ी उस लड़के को वापस देते हुए कहा, "अब ऐसी घड़ी पहनकर स्कूल नही आना और जिसने भी यह चोरी की थी वह दोबारा ऐसा काम न करे। इतना कहकर आप फिर हमेशा की तरह पढ़ाने लगे थे।"
कहते कहते उसकी आँख भर आईं ।
वह रुंधे गले से बोला, "आपने मुझे सबके सामने शर्मिंदा होने से बचा लिया। बाद में भी कभी किसी पर आपने मेरा चोर होना ज़ाहिर न होने दिया। आपने कभी भी मेरे साथ भेदभाव नही किया। इस बात ने मुझ पर इतना प्रभाव डाला कि मैंने उसी दिन तय कर लिया था कि मैं भीआपके पदचिन्हों पर चलके - आपके जैसा गुरु बनने की कोशिश करुँगा। "
लेकिन गुरु जी , एक बात मेरी समझ में आज तक नहीं आई। आपने मुझे सबके सामने शर्मिंदा होने से तो बचा लिया लेकिन आप मुझे अकेले में तो डाँट सकते थे - ऐसा करने से रोक सकते थे ? आपने कभी अकेले में भी मुझसे इस बात का ज़िक्र तक नहीं किया। "
गुरु जी के होंठों पर मुस्कुराहट और आँखों में हल्की सी चमक आ गयी। फिर धीरे से बोले:
"बेटा... मुझे भी कभी इस बात का पता नहीं चला कि वह चोरी किसने की थी
क्योंकि जब मैं तुम सबकी जेबें देख कर रहा था - तब मैंने भी अपनी आँखें बंद की हुई थीं।"
क्योंकि जब मैं तुम सबकी जेबें देख कर रहा था - तब मैंने भी अपनी आँखें बंद की हुई थीं।"
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