भापा राम चंद जी कपूरथला वाले अक़्सर प्रचार यात्राओं पर अकेले ही जाया करते थे। स्वयं ही अपना सामान उठाते और स्वयं ही लाइन में खड़े हो कर अपने लिए बस या ट्रेन की टिकट ख़रीदते। उनकी आयु और वृद्धावस्था को देखते हुए बाबा गुरबचन सिंह जी ने कई बार उन्हें किसी को अपने साथ ले जाने के लिए कहा - जो उनका ध्यान रख सके।
एक बार उनका प्रोग्राम था लुध्याना,पटियाला और चंडीगढ़ होते हुए शिमला जाने का। बाबा जी की बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने किसी को अपने साथ ले जाना ठीक समझा। ये घटना 1965 -1966 के आस पास की है। भापा जी के दौत्र (Maternal Grandson) गुलशन आहूजा जी B.A. की डिग्री मिलने के बाद B.Ed. की तय्यारी कर रहे थे। उन दिनों कॉलेज में छुट्टियां चल रही थीं। भापा जी के मन में विचार आया कि क्यों न गुलशन को ही साथ ले लिया जाये।
उन दिनों, निरंकारी भवन कपूरथला के अंदर दाख़िल होते ही दाहिनी साइड में एक छोटा सा कमरा हुआ करता था जिस में भापा जी रहते थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि उस कमरे में सिर्फ दो साधारण सी कुर्सियां, एक मेज और एक तरफ एक चारपायी थी - जिस पर भापा जी सोया करते थे।
सब मिलने वाले एवं आशीर्वाद लेने के लिए आने वाले भक्तजन भी अक़्सर उन्हें उसी कमरे में ही मिलते थे। परिवार के सदस्य भी जब बाहर से आते तो पहले उस कमरे में जाकर भापा जी को नमस्कार करने के बाद ही अपने कमरों में जाते थे।
गुलशन जी भी उस दिन शाम को जब घर आये तो हमेशा की तरह पहले भापा जी के कमरे में गए और नमस्कार कर के कहने लगे कि भापा जी - आप जी से इक विनती करनी है। भापा जी ने कहा मुझे भी तुमसे कुछ कहना है मगर पहले तुम कहो।
गुलशन जी: "मैंने सुना है कि आप जी शिमला जा रहे हो "
भापा जी: हाँ। जा तो रहा हूँ "
गुलशन जी: क्या मैं आपके साथ जा सकता हूँ ? मैंने कभी शिमला नहीं देखा। इस तरह संगतों के साथ साथ मैं शिमला भी देख लूँगा।
भापा जी मुस्कुरा के बोले "तो तेरा ध्यान है मेरे साथ जाने का "?
गुलशन जी ने कहा "हाँ भापा जी ध्यान तो है अगर आप इजाज़त दें "
भापा जी ने फिर पूछा "अच्छी तरह सोच ले। ये तेरा ध्यान है मेरे साथ जाने का और शिमला भी देखने का ?
गुलशन जी बोले "जी भापा जी"
"तो फिर बस की टिकटों का ख़र्च तुझे अपनी जेब से करना पड़ेगा" भापा जी ने कहा।
इस पर गुलशन जी ने कहा कि उन्हों ने ये पहले ही सोच रखा था कि वो इसका ख़र्च अपने पिता जी से लेंगे और फिर पूछा कि अब बताइए आपने मुझे क्या कहना था ?
भापा जी ने हँसते हुए कहा कि मैंने भी तुझे यही पूछना था कि क्या तुम मेरे साथ शिमला चल सकते हो? लेकिनअब, चूँकि ये तेरा ध्यान है - तेरी इच्छा है इसलिए अब मैं तेरी टिकटों का ख़र्च मंडल यानि संगतों की नमस्कार में से नहीं कर सकता।
हाँ .... अगर ये तुम्हारी अपनी इच्छा, और शिमला में घूमने की लालसा न होती और सिर्फ प्रचार की भावना से तुम मेरे साथ चलते तो बात अलग थी।
ऐसे महान सन्त थे भापा राम चंद जी - और ऐसी थी उनकी महान सोच।
'राजन सचदेव '
एक बार उनका प्रोग्राम था लुध्याना,पटियाला और चंडीगढ़ होते हुए शिमला जाने का। बाबा जी की बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने किसी को अपने साथ ले जाना ठीक समझा। ये घटना 1965 -1966 के आस पास की है। भापा जी के दौत्र (Maternal Grandson) गुलशन आहूजा जी B.A. की डिग्री मिलने के बाद B.Ed. की तय्यारी कर रहे थे। उन दिनों कॉलेज में छुट्टियां चल रही थीं। भापा जी के मन में विचार आया कि क्यों न गुलशन को ही साथ ले लिया जाये।
उन दिनों, निरंकारी भवन कपूरथला के अंदर दाख़िल होते ही दाहिनी साइड में एक छोटा सा कमरा हुआ करता था जिस में भापा जी रहते थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि उस कमरे में सिर्फ दो साधारण सी कुर्सियां, एक मेज और एक तरफ एक चारपायी थी - जिस पर भापा जी सोया करते थे।
सब मिलने वाले एवं आशीर्वाद लेने के लिए आने वाले भक्तजन भी अक़्सर उन्हें उसी कमरे में ही मिलते थे। परिवार के सदस्य भी जब बाहर से आते तो पहले उस कमरे में जाकर भापा जी को नमस्कार करने के बाद ही अपने कमरों में जाते थे।
गुलशन जी भी उस दिन शाम को जब घर आये तो हमेशा की तरह पहले भापा जी के कमरे में गए और नमस्कार कर के कहने लगे कि भापा जी - आप जी से इक विनती करनी है। भापा जी ने कहा मुझे भी तुमसे कुछ कहना है मगर पहले तुम कहो।
गुलशन जी: "मैंने सुना है कि आप जी शिमला जा रहे हो "
भापा जी: हाँ। जा तो रहा हूँ "
गुलशन जी: क्या मैं आपके साथ जा सकता हूँ ? मैंने कभी शिमला नहीं देखा। इस तरह संगतों के साथ साथ मैं शिमला भी देख लूँगा।
भापा जी मुस्कुरा के बोले "तो तेरा ध्यान है मेरे साथ जाने का "?
गुलशन जी ने कहा "हाँ भापा जी ध्यान तो है अगर आप इजाज़त दें "
भापा जी ने फिर पूछा "अच्छी तरह सोच ले। ये तेरा ध्यान है मेरे साथ जाने का और शिमला भी देखने का ?
गुलशन जी बोले "जी भापा जी"
"तो फिर बस की टिकटों का ख़र्च तुझे अपनी जेब से करना पड़ेगा" भापा जी ने कहा।
इस पर गुलशन जी ने कहा कि उन्हों ने ये पहले ही सोच रखा था कि वो इसका ख़र्च अपने पिता जी से लेंगे और फिर पूछा कि अब बताइए आपने मुझे क्या कहना था ?
भापा जी ने हँसते हुए कहा कि मैंने भी तुझे यही पूछना था कि क्या तुम मेरे साथ शिमला चल सकते हो? लेकिनअब, चूँकि ये तेरा ध्यान है - तेरी इच्छा है इसलिए अब मैं तेरी टिकटों का ख़र्च मंडल यानि संगतों की नमस्कार में से नहीं कर सकता।
हाँ .... अगर ये तुम्हारी अपनी इच्छा, और शिमला में घूमने की लालसा न होती और सिर्फ प्रचार की भावना से तुम मेरे साथ चलते तो बात अलग थी।
ऐसे महान सन्त थे भापा राम चंद जी - और ऐसी थी उनकी महान सोच।
'राजन सचदेव '
Very inspirational memory......kahe Avtar sant hari de mout baad vi zinda rahe......keep blessings always.....Dhan nirankar ji
ReplyDeleteThank you for sharing these memories.
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