दोस्त बन के लोग दग़ा देते रहे
ऐसे भी कुछ लोग हमने देखे हैं
फिर भी हम उनको दुआ देते रहे
उसने तो मुड़ के भी फिर देखा नहीं
उसने तो मुड़ के भी फिर देखा नहीं
हम मगर उसको सदा देते रहे
पहले जो इन रास्तों से गुज़रे थे
मंज़िलों का वो पता देते रहे
ऐसे भी कुछ लोग हमने देखे हैं
जो लगा के आग हवा देते रहे
ज़ुर्म क्या था ये उन्हें भी याद नहीं
उम्र भर लेकिन सज़ा देते रहे
उनका भी एहसान मुझ पे है कि जो
हर क़दम पे हौसला देते रहे
उन की हिम्मत देखिये 'राजन 'ज़रा
ज़ख़्म खा के जो दुआ देते रहे
'राजन सचदेव'
'राजन सचदेव'
(28 अगस्त 2015)
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