Monday, August 31, 2015

दोस्त बन के लोग दग़ा देते रहे

दोस्त बन के लोग दग़ा देते रहे 
फिर भी हम उनको दुआ देते रहे

उसने तो मुड़ के भी फिर देखा नहीं 
हम मगर उसको सदा देते रहे 

पहले जो इन रास्तों से गुज़रे थे 
मंज़िलों का वो पता देते रहे 

ऐसे भी कुछ लोग हमने देखे हैं 
जो लगा के आग हवा देते रहे 

ज़ुर्म क्या था ये उन्हें भी याद नहीं 
उम्र  भर लेकिन सज़ा देते रहे 

उनका भी एहसान मुझ पे है कि जो 
हर  क़दम  पे  हौसला  देते  रहे  

उन की हिम्मत देखिये 'राजन 'ज़रा 
ज़ख़्म खा के जो दुआ देते रहे 
                            'राजन सचदेव' 
                                (28 अगस्त 2015) 


No comments:

Post a Comment

न समझे थे न समझेंगे Na samjhay thay Na samjhengay (Neither understood - Never will)

न समझे थे कभी जो - और कभी न समझेंगे  उनको बार बार समझाने से क्या फ़ायदा  समंदर तो खारा है - और खारा ही रहेगा  उसमें शक्कर मिलाने से क्या फ़ायद...