कुछ लोग भगवान राम को ईश्वर का अवतार मानते हैं
और कुछ लोग उनके आस्तित्व पर - उनकी होंद पर ही शंका करते हैं और सवाल उठाते हैं।
उनके विचार में राम की कहानी केवल एक कल्पना मात्र है।
और कुछ ऐसे भी हैं जो राम के गुण न देख कर केवल उनकी कमियां और त्रुटियां ढूंढने में लगे रहते हैं।
सच्चाई को जानने के लिए - राम को पहचानने के लिए ज्ञान की दृष्टि चाहिए।
अगर हम उनके बारे में लिखी गई सारी बातों को ज्यों का त्यों सही मान लेंगे तो दो परिणाम होंगे।
या तो वह हमें ईश्वर का अवतार अर्थात मानव रुप में स्वयं ईश्वर ही दिखाई देंगे।
या फिर कुछ लोग श्री राम को इस्त्रियों और शूद्रों के साथ भेदभाव और अत्याचार करने वाला समझ लेंगे और उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने लगेंगे ।
या फिर कुछ लोग श्री राम को इस्त्रियों और शूद्रों के साथ भेदभाव और अत्याचार करने वाला समझ लेंगे और उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने लगेंगे ।
उपरोक्त दोनों ही बातें अतिश्योक्ति हो सकती हैं।
ऐसा तभी होता है जब पाठक उनके बारे में लिखी गई हरेक बात को ज्यों का त्यों सही मान लेता है।
राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।
पुरुषोत्तम - अर्थात पुरुषों में सबसे उत्तम।
अर्थात उनका जीवन आदर्शनीय एवं अनुकरणीय है।
भगवान राम हमारे लिए केवल गर्व की बात ही नहीं बल्कि हमारे मार्गदर्शक भी हैं।
उनका जीवन हमारे लिए एक आदर्श पेश करता है जिस पर चलना हमारा कर्तव्य है।
यदि हम उन्हें केवल अपना आदर्श मान लें - लेकिन उनके दिखाए मार्ग पर नहीं चलें तो उससे हमें या समाज को कोई लाभ नहीं होगा।
यूं तो भगवान राम की जीवन कथा में बहुत सी बातें हैं - बहुत से अनुकरणीय आदर्श हैं - लेकिन उनका सबसे बड़ा गुण माना जाता है उनका आज्ञाकारी होना।
केवल अपने पिता का ही नहीं बल्कि अपनी माता का भी
और केवल अपनी सगी मां का ही नहीं बल्कि अपनी सौतेली मां का भी।
वे चाहते तो अपने पिता और सौतेली माता की आज्ञा मानने से इंकार भी कर सकते थे।
बल्कि उनके पिता राजा दशरथ ने तो उन्हें वन में जाने की आज्ञा दी ही नहीं थी - वो तो उन्हें रोकते ही रहे।
यदि राम चाहते तो रुक सकते थे - लेकिन वे नहीं रुके। वे वन में चले गए। इस तरह उन्होंने अपने भाइयों के बीच होने वाले उस आपसी टकराव की संभावना को टाल दिया जो बाद में महाभारत काल में एक भयंकर युद्ध के रुप में उभरा और भारी विनाश का कारण बना।
आज भी भाई का भाई से टकराव एक बड़ी समस्या है।
यह टकराव टाला जा सकता है लेकिन उसके लिए बड़े भाई को वन में जाना पड़ेगा।
लेकिन आज कोई 'बड़ा भाई' वन में जाने के लिए तैयार नहीं है।
कोई भी बड़े - चाहे वो माता पिता हों या कोई लीडर अथवा अधिकारी - किसी भी किस्म के त्याग और बलिदान के लिए तैयार नहीं हैं लेकिन अजीब विडम्बना है कि फिर भी वह कहते हैं कि वे भगवान राम को मानते हैं और भगवान राम उनका आदर्श हैं।
मर्यादा पालन के अतिरिक्त भगवान राम के अन्य महान गुणों में वीरता, पवित्रता और प्रेम की चर्चा होती है।
असल में ये तीन गुण मानवता के सारे ही गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वीरता का अर्थ निर्बल की रक्षा करने के साथ साथ स्वयं अपने मन पर नियंत्रण भी है।
यदि राम में स्वयं-नियंत्रण का गुण - अपने मन पर अधिकार नहीं होता तो वह राज-पाट छोड़ कर वन में कभी नहीं जाते।
पवित्रता में शरीर और मन की पवित्रता के साथ ईश्वर और धर्म का बोध - अर्थात कर्तव्य का बोध और उसका निर्वाह भी जुड़ा हुआ है।
प्रेम के साथ साथ दया, शांति, धैर्य और क्षमा के गुण भी इंसान के स्वभाव में स्वयं ही आ जाएंगे क्योंकि इनके बिना प्रेम संभव ही नहीं है।
प्रेमी का जीवन त्याग और बलिदान के गुणों से भी युक्त मिलेगा क्योंकि प्रेम बलिदान मांगता है।
प्रेम और बलिदान से मिलता है जगत में सही सम्मान और अमरत्व।
जितना बड़ा बलिदान होगा - उतना ही बड़ा और गौरवपूर्ण उसका स्थान होगा लोगों के दिलों में।
राम का नाम राम की याद दिलाता है - उनके जीवन एवं कर्म की याद दिलाता है।
राम के नाम को उनके कर्म से जोड़कर देखना चाहिए। यदि हमारे सामने कोई वैसी ही परिस्थिति आए तो हमें भी वही करने का प्रयत्न करना चाहिए जो भगवान राम ने किया था।
भगवान राम केवल मन में ही नहीं बल्कि कर्म से भी प्रकट होने चाहिएं।
यही संदेश है राम-नवमी का।
🙏🙏
ReplyDeleteVery nice message !
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