Monday, November 21, 2022

जहाँ में हर कोई अपना मुक़द्दर ले के आया है

कोई इक तिशनगी कोई समन्दर ले के आया है
जहाँ में हर कोई अपना मुक़द्दर ले के आया है

तबस्सुम उसके होटों पर है, उसके हाथ में गुल हैं
मगर मालूम है मुझको वो खंज़र ले के आया है

तेरी महफ़िल से दिल कुछ और तन्हा हो के लौटा है
ये लेने क्या गया था  - और क्या घर ले के आया है

बसा था शहर में बसने का इक सपना जिन आँखो में
वो उन आँखों में घर जलने का मंज़र ले के आया है

न मंज़िल है न मंज़िल की है कोई दूर तक उम्मीद
ये किस रस्ते पे मुझको मेरा रहबर ले के आया है
                                     " राजेश रेड्डी "

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When the mind is clear

When the mind is clear, there are no questions. But ... When the mind is troubled, there are no answers.  When the mind is clear, questions ...